माँ अपनी संतान के लिए कठोरतम व्रत करती है जितिया !

 


 जब मैं  छोटा था तो इस व्रत को खूब खाने पीने वाला व्रत समझकर खुशियां मनाते थे। यह निर्जला ,कठोरतम  व्रत का एहसास मुझे अब माँ को देखकर हुआ। बृद्ध ,लाचार, बीमार माँ हम 6 भाइयों व एक बहन की दीर्घायु के लिए कठोर तपस्या करती है। माँ !  ऐसा एक दिन भी नहीं जिस दिन मुझे खाने के बारे में ,सेहत के बारे में न पूछती हो।कल मैं जाकर नजदीक से माँ को देखा और तबियत के बारे में पूछा, लेकिन सकारात्मक जवाब नहीं दी। मैं उपवास रखने के लिए मना किया तो मुझे ही प्यारा से डांट दी। 

सन्तान को माता पिता के बेहतरी के कोई व्रत नही है।मुझे लगता है कि संतान को अपने माता पिता के बेहतरी के लिए सालों व्रत बना हुआ है।  प्यारा से बातें करने का ,देखभाल करने का ,सही समय पर उनकी जरूरतों को पूरा करने का। 

  मैं महसूस किया हूँ कि जब भी माँ के पास बैठकर बातें करता हूँ ,वो पुलकित हो उठती हैं।

  बहुत साल पहले माँ जब वेंटिलेटर पर थी ।मैं सामने खड़ा गमगीन था ,उसकी आँखों में आंसू आ गए थे और वो ठीक होकर घर पर आ गयी थी और आज खुद टहलते रहती है।मैं अधिक से अधिक माँ के पास रहकर स्वर्णिम समय का सुखद अनुभूति प्राप्त करना चाहता हूँ, लेकिन अर्थयुग में हम आदमी नहीं एक मशीन बनकर रह गए हैं। मशीन बनने के कारण अपनों के  रिश्तेदारों के साथ नाइंसाफी करते रहते हैं। 

देश की करोड़ों माताएं अपने संतान की दीर्घायु के लिए यह कठोर तप करती है। संतानों को भी इसकी मूल्य समझना चाहिए।मुझे लगता है कि अगर संतान को यह एहसास हो जाये तो कोई माता पिता सड़कों पर भटकते नहीं मिलेंगे,बृद्धाश्रम में भेजने की जरूरत नहीं होगी और न ही कोई कटु वचन बोलेंगे।

 माता पिता को संतान से प्रेम की जरूरत है, न कि धन दौलत की।

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