आज भी एकलव्यों के अंगठा काट रहे द्रोणचार्य !
सुप्रीम कोर्ट पहल नहीं करती तब 17500 रुपये के बिना दलित छात्र आईआईटी में पढ़ने से वंचित रह जाता।
हाय रे विकसित भारत ! देश के बड़े बड़े दलित राजनेता ! दलितों की दुहाई देने वाले झूठे मक्कार लोग। इतनी छोटी राशि नहीं जमा करने के कारण एक दलित छात्र आईआईटी में पढ़ने से वंचित रह जाता अगर समय पर सुप्रीम कोर्ट फरमान नहीं सुनाया होता। गैर जरूरी कार्यों में ,दिखावा करने में लाखों ,करोड़ों लुटा रहे हैं। देवस्थानों में अरबों रुपये ,सोने ,चांदी बन्द पड़े हैं और यहाँ चंद रुपयों के लिए लोगों का जीवन बर्बाद हो रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी असाधारण शक्ति का प्रयोग करते हुए आईआईटी धनबाद को एक दलित छात्र को एडमिशन देने का निर्देश दिया। यह छात्र फीस जमा करने की समय सीमा चूक जाने के कारण अपनी सीट खो बैठा था। 17,500 रुपये... यह वह फीस थी जो एक दलित छात्र को आईआईटी धनबाद में अपना एडमिशन सुरक्षित करने के लिए देनी थी। उत्तर प्रदेश के छात्र के पास फीस जमा करने के लिए चार दिन थे। छात्र के पिता, जो एक दिहाड़ी मजदूर हैं, ने अपनी तरफ से हरसंभव कोशिश की, लेकिन फीस जमा करने की समयसीमा चूक गए। छात्र का आईआईटी जाने के सपने पर ब्रेक लग गया।
इसके बाद छात्र के पिता इस लड़ाई को अदालत में ले गए। तीन महीने तक, पिता ने एससी/एसटी आयोग, झारखंड और मद्रास उच्च न्यायालयों के चक्कर काटे। अंत में, जब कुछ भी काम नहीं आया, तो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने आईआईटी को छात्र को प्रवेश देने का आदेश दिया। पैसों वाले को अविलम्ब ऐसे जरूरतमंदों को मदद करना चाहिए।
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