भारत पर वित्तिय ऋण 90 फीसदी पहुंचा। प्रो प्रसिद्ध कुमार Hod Economics
विश्व बैंक ने निम्न मध्यवर्गीय आय वाले 109 मुल्कों को उनकी अर्थव्यवस्था में बाहरी वित्तीय ऋण के प्रभाव को विश्लेषित किया है। विश्व बैंक की सोच के मद्देनजर निम्न मध्यवर्गीय आय वाले देश वे सब हैं, जहां प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 1100 डालर से लेकर 4515 डालर के मध्य है। इस रपट के मुताबिक बीते दस वर्षों में इन देशों पर भारी वित्तीय ऋण का भार 55 फीसद की दर से बढ़ गया है। वर्ष 2013 में इन देशों पर बाहरी वित्तीय ऋण 5713 अरब डालर था, जो वर्ष 2023 के अंत तक बढ़ कर 8837 अरब डालर पर पहुंच गया।
वर्ष 2021 में इस वित्तीय ऋण में अत्यधिक बढ़ोतरी हुई थी। कोरोना काल के कारण तब स्थिति गंभीर थी। विश्व बैंक की रपट के कुछ आंकड़े चिंता पैदा करते हैं कि भारत पर बाहरी वित्तीय ऋण के ब्याज की लागत पिछले एक वर्ष में 90 फीसद से अधिक बढ़ गई है। वर्ष 2022-23 में ब्याज की लागत 23 फीसद के आसपास थी, जो अब 92 फीसद दर्ज हुई है। विश्व बैंक की यह रपट कैलेंडर वर्ष की गणना के मुताबिक है। इस आंकड़े से स्पष्ट है कि अगर एक वर्ष में ऋण की लागत या ब्याज का पुनर्भुगतान करीब दोगुना देना पड़े, तो यकीनन इसका नकारात्मक प्रभाव आने वाले समय में अर्थव्यवस्था में विकास की दर पर भी देखने को मिलेगा।
भारतीय अर्थव्यवस्था में बाहरी ऋण का भुगतान चूंकि डालर में ही करना होता है, तो इस कारण ब्याज की लागत पिछले एक वर्ष में 90 फीसद से अधिक बढ़ गई है।
जीडीपी की दौड़ में पांचवें पायदान से ऊपर उठने के लिए विकास दर का लगातार सात फीसद या इसके आसपास बना रहना आवश्यक है। विश्व बैंक की ताजा रपट, जिसमें 109 देशों का विश्लेषण किया गया है, उसमें दक्षिण एशियाई देशों के बारे में यह बताया गया कि इनमें विदेशी ऋण का भार और उसके ब्याज की लागत लगातार बढ़ रही है। इन देशों में मुख्यत: भारत और बांग्लादेश सम्मिलित किए गए हैं।
विश्व बैंक की ताजा रपट के मुताबिक आज भारतीय अर्थव्यवस्था में बाहरी वित्तीय ऋण 646 अरब डालर है। इस वित्तीय ऋण का 77 फीसद दीर्घकालीन यानी लंबी अवधि के लिए लिया गया ऋण है। बाकी बचा 23 फीसद अल्प अवधि का है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था के बाहरी वित्तीय ऋण का करीब एक तिहाई हिस्सा विश्व बैंक, एशियन डेवलपमेंट बैंक और अन्य बड़ी वित्तीय संस्थानों से लिया हुआ है।
भारत को अब तेजी से अपने निर्यात बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना पड़ेगा ताकि विदेशी मुद्रा का अधिक से अधिक संग्रहण हो।
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