ईमानदारी की मिसाल थे कर्पूरी ठाकुर !

 


आज भ्रष्टाचार की युग में कर्पूरी जी और प्रासंगिक हैं। एक सूबे के मुख्यमंत्री के पास पुस्तैनी झोपड़ी के अलावा कुछ नहीं था । वे वंचितों के लिए जितना किये । शायद दूसरा कोई इतना ईमानदारी से नहीं किये। बिहार के राजनीति के शीर्ष पर होने के बावजूद भी इनका जातीय भेदभाव कम नहीं था । आज इनको अपमानित करने वाले भी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और अपने आप को भारी मन से ही  इनका वारिश कहने पर गर्व महसूस करते हैं।

उनके ज्ञान और सादगी को जितना पसंद किया जाता था, उतना ही उनकी छोटी-मोटी चालबाज़ियों को भी लोग ख़ूब पसंद करते थे.


ये सब करना उनकी कलाकारी नहीं, मजबूरी थी क्योंकि विचारों के अलावा समाजवादी धारा ने कभी उनको ठोस राजनीतिक आधार नहीं दिया.


बिहार का पिछड़ा आंदोलन उनकी पीढ़ी के साथ ही परवान चढ़ा. इस जमात में भी दबंग यादवों-कोइरियों-कुर्मियों के आगे नाई जाति के एक व्यक्ति की क्या बिसात हो सकती थी, जिनकी आबादी हर गाँव में एक-दो घर से ज्यादा नहीं होती.


दूसरी ओर, जनता पार्टी लगातार टूटती-बिखरती रही और अक्सर कर्पूरी ठाकुर को बेमन से किसी पक्ष में साथ होना पड़ता था. पार्टी के विभाजन में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा नहीं लिया.


कर्पूरी ठाकुर की एक ख़ासियत थी कि उन्होंने कभी बुनियादी मूल्यों से समझौता नहीं किया. समाजवाद और सामाजिक न्याय उनके लिए सबसे बुनियादी मूल्य थे.


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