तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा : नेताजी सुभाष चंद्र बोस

 


‘दोस्तों! मैं चाहता हूं कि आप एक बार फिर महसूस करें कि आपके पास आजादी हासिल करने का एक सुनहरा मौका है। ब्रिटिश दुनियाभर के संघर्ष में उलझे हुए हैं और संघर्ष के दौरान उन्हें कई मोर्चों पर हार के बाद हार का सामना करना पड़ा है। दुश्मन इस तरह काफी कमजोर हो रहा है, आजादी की हमारी लड़ाई पांच साल पहले की तुलना में बहुत आसान हो गई है। 

हमारी मातृभूमि को ब्रिटिश काल से मुक्त करने के लिए इस तरह का दुर्लभ और ईश्वर का दिया यह अवसर एक सदी में एक बार आता है। इसीलिए हमने प्रण लिया है कि हम इस अवसर का पूरा फायदा अपनी मातृभूमि को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद करने में उठाएंगे। इस आधुनिक युग में हथियारों और आधुनिक सेना के बिना निहत्थे लोगों के लिए आजादी पाना असंभव है। ईश्वर की कृपा से और उदार जापानियों की मदद से, पूर्वी एशिया में मौजूद भारतीयों के लिए हथियार पाकर आधुनिक सेना खड़ी करना संभव हो गया है। 
आजादी हासिल करने के प्रयासों में पूर्वी एशिया के भारतीय एकता में बंधे हुए हैं और धार्मिक और अन्य भिन्नताओं का, जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने भारत के अंदर हवा देने की कोशिश की, यहां पूर्वी एशिया में नामोनिशान नहीं है। ‘पूर्ण लामबंदी’ के कार्यक्रम के अनुसार, मैंने आप लोगों से जवानों, पैसे और सामग्री की मांग की थी। जवानों के बारे में, मुझे आपको यह बताते हुए खुशी हो रही है कि मैंने पहले से ही पर्याप्त भर्तियां प्राप्त कर ली हैं। हमें मुक्त हुए क्षेत्रों के प्रशासन और पुनर्निर्माण के लिए सभी वर्ग के पुरुषों और महिलाओं की आवश्यकता है। एक बड़ी समस्या युद्धभूमि में जवानों और सामग्री को पहुंचाने की है। यदि हम ऐसा नहीं करते हैं, तो हम मोर्चों पर अपनी सफलता बनाए रखने की उम्मीद नहीं कर सकते। 
आपमें से जो लोग इस घरेलू मोर्चे पर काम करना जारी रखेंगे, उन्हें ये कभी नहीं भूलना चाहिए कि पूर्वी एशिया, विशेष रूप से बर्मा, आजादी की लड़ाई के लिए हमारे आधार हैं। यदि यह आधार मजबूत नहीं है, तो हमारी लड़ाकू सेनाएं कभी विजयी नहीं होंगी। याद रखिए यह एक संपूर्ण युद्ध है और केवल दो सेनाओं के बीच की लड़ाई नहीं। आने वाले महीनों में मैं और युद्ध समिति के मेरे सहयोगी चाहते हैं कि अपना सारा ध्यान लड़ाई के मोर्चे और भारत के अन्दर क्रांति लाने के काम पर लगाएं। इसीलिए, हम पूरी तरह आश्वस्त होना चाहते हैं कि हमारी अनुपस्थिति में भी यहां का काम बिना बाधा के सुचारू रूप से चलता रहेगा। 
दोस्तों, एक साल पहले, जब मैंने आपसे कुछ मांगें कीं, तो मैंने आपसे कहा था कि अगर आप मुझे ‘पूर्ण लामबंदी’ देंगे, तो मैं आपको एक ‘दूसरा मोर्चा’ दूंगा। मैंने उस प्रतिज्ञा को निभाया है। हमारे अभियान का पहला चरण समाप्त हो गया है। हमारे विजयी सैनिकों ने दुश्मन को पीछे धकेल दिया है। आगे के काम के लिए अपनी कमर कस लें। यहां किसी को भी आजादी का आनंद लेने के लिए जीने की इच्छा नहीं होनी चाहिए। एक लंबी लड़ाई हमारे सामने है। आज हमारे अंदर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए- मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके- एक शहीद की मृत्यु की इच्छा, ताकि आजादी के रास्ते शहीदों के खून से प्रशस्त हो सके। 

दोस्तों! स्वतंत्रता संग्राम में भाग ले रहे मेरे साथियों! आज मैं इस बात पर आप सभी से एक बड़ी मांग करता हूं। मैं आपसे खून की मांग करता हूं। यह खून ही है जो दुश्मन के खून का बदला ले सकता है। केवल खून ही है जो आजादी की कीमत चुका सकता है। तुम मुझे खून दो और मैं तुमसे आजादी का वादा करता हूं।’
(4 जुलाई 1944 को बर्मा में नेताजी सुभाष चंद्र बोस

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