रेलवे की कुव्यवस्था के कारण दिल्ली में भगदड़ !

 

 अंधा राजा देश को भी अंधा बना देता है-यह एक प्रचलित कहावत है।



रेलगाड़ी के आगमन के समय अचानक प्लेटफार्म नंबर बदलने की प्रचलन रेलवे की पुरानी है। सामान्य दिनों में भी यात्री एक प्लेटफार्म से दूसरे प्लेटफार्म पर भाग दौड़ कर ट्रेन पकड़ते हैं।ऐसे में छोटे छोटे बच्चे, बुजुर्ग, महिलाओं, दिव्यांगों का हाल क्या होता है?शायद रेलवे को इसका अध्ययन करने की जरूरत नहीं हुई।  रेलवे को यह जानकारी में थी कि प्लेटफार्म पर काफी तायदाद में यात्री हैं।ऐसे में बिना सोचे समझे ट्रेन आगमन का प्लेटफार्म नंबर बदल देना रेलवे का अपराध से कम नहीं है। कुम्भ में अमृत स्नान के लिए हर रोज पीएम व यूपी के सीएम का विज्ञापन निकलता है। 144 साल का योग बताया जाता है, मोक्ष प्राप्ति का साधन बताया जाता है तो ऐसे में भोलेभाले लोग कुम्भ में क्यों न जायें।  यात्रियों की जानमाल की हिफाजत करना सरकार की जिम्मेवारी है लेकिन अभी तक कोई जिम्मेवारी लेने को तैयार नहीं है, बल्कि उल्टे इतना करोड़ प्लस लोग कुम्भ में स्नान किये का विज्ञापन दिखाया जाता है। तीर्थयात्रियों के आगमन से आर्थिक विकास का मॉडल बताया जा रहा है।  अगर कोई भीड़ में जाने से बचने का सलाह दिया तो उसे धर्म विरोधी करार दिया जाता है। आखिर इतना पाखंड ,अंधविश्वास देश में क्यों फैलाया जा रहा है?इससे किसका भला होने वाला है।धर्म आस्था का है लेकिन इसे झूठे प्रलोभन देकर मौत के मुंह में धकेलना उचित नहीं है।
इस घटना से यह सवाल उठता है कि इतने वर्षों के बाद भी रेलवे प्रशासन ने इन हादसों से कोई ठोस सबक क्यों नहीं लिया? जब इतने बड़े स्टेशन पर भारी भीड़ होती है, तो वहां का सुरक्षा और भीड़ प्रबंधन व्यवस्था में गंभीर खामियां क्यों हैं? 
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर शनिवार को हुई भगदड़ की घटना ने एक बार फिर रेलवे सुरक्षा व्यवस्था और भीड़ प्रबंधन के सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर दिया है। यह हादसा कोई नया नहीं है। इससे पहले भी इस स्टेशन पर कई बार भगदड़ जैसी घटनाएं घट चुकी हैं। 2004, 2010 और 2012 में भी यहां भगदड़ मचने के कारण कई लोगों की जान गई थी। इस बार भी शनिवार रात ऐसे ही हादसे में 18 लोगों की मौत हो गई।
पिछले तीनों हादसे अचानक ट्रेन के प्लेटफार्म बदलने के दौरान मची अफरातरफी से हुए। 2004 में बिहार जाने वाली ट्रेन के प्लेटफार्म को लेकर भगदड़ मच गई थी, जिसमें पांच महिलाओं की जान गई। इसी तरह वर्ष 2010 में भी पटना जाने वाली ट्रेन के प्लेटफार्म को आखिरी वक्त में बदल दिया गया, जिससे भगदड़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई थी और वर्ष 2012 में बिहार जाने वाली ट्रेन के प्लेटफार्म में बदलाव के कारण एक महिला और एक किशोर की मौत हो गई थी। अब, वर्ष 2025 में भी वही कारण सामने आया है कि प्लेटफार्म का अचानक बदलाव करने के कारण एक और दर्दनाक हादसा हुआ।
जब इतने बड़े स्टेशन पर भारी भीड़ होती है, तो वहां का सुरक्षा और भीड़ प्रबंधन व्यवस्था में गंभीर खामियां क्यों हैं? क्या यह प्रशासन की सुस्ती, लापरवाही और अव्यवस्था का परिणाम है? हालांकि रेलवे प्रशासन हर बार कहता है कि प्लेटफार्म बदलाव की जानकारी यात्रियों को समय पर दी जाती है, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या उस जानकारी को सही तरीके से लागू किया जा रहा है? क्या यात्रियों के लिए सुगम रास्तों और उचित व्यवस्था की योजना बनाई गई है? एक तरफ जहां रेलवे के पास पर्याप्त संसाधन और समय है, वहीं इस तरह के हादसों को रोकने के लिए प्राथमिक कदम क्यों नहीं उठाए जा रहे हैं?

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