संत कबीर की तरह पाखंड का विरोध करें।

  


लालू यादव बिना लाग लपेट के सीधे तौर पर कहा कि कुम्भ फालतू चीज है।खड़गे ने कहा था कि कुम्भ में स्नान करने से गरीबी व अशिक्षा नहीं खत्म होगी। अब इस पर धर्म के ठेकेदार छाती पीटने लगे।  इसमें दोनों ने क्या गलत कह दिया?इसे तार्किक व वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर सोचें। सरकार ने विज्ञापन से प्रचार प्रसार से जन जन को कुम्भ में जाने के लिए प्रेरित किया तो उसका सही इंतजाम भी सरकार को करनी चाहिए थी। अगर दर्जनों लोग स्नान करने के चक्कर में अपनी जान गंवाये तो इसमें दोष किसकी है ?धर्म के नाम पर क्षणिक सत्तासीन हो सकते हैं लेकिन देश को रसातल में धकेल दिया है।देश का पूरा तंत्र धर्म में लगा हुआ है।शिक्षा, रोजगार, महंगाई आदि से कोई लेना देना नहीं है । आंखें खोलें । बिना मतलब के भीड़ की हिस्सा बनकर अपनी जान जोखिम में न डालें। जिनके परिवार इस भीड़ के शिकार हुए हैं, उनसे पूछिए की ये पाखंड कितना जख्म दे गया।

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