जनप्रतिनिधियों के दुर्लभ दर्शन उनकी किश्ती डुबो सकती है । प्रो प्रसिद्ध कुमार ,बात खड़ी खड़ी !
चुनाव के समय नेता गली नली खाक छानते हैं और जीतने के बाद दूरदर्शन ही नहीं दुर्लभ दर्शन हो जाते हैं।
जनप्रतिनिधि का मतलब होता है जनता के लिए सुलभ ।बिना हिचक के जनता अपनी कोई भी समस्याओं को रखें। जब जनता को नेता के मूड भांप कर अपनी बात कहने का सलाह दिया जाए तो समझिए कि वैसे नेताजी के दिन पूरे हो गये हैं। राजनीतिक कार्यकर्ता जनता के बीच कोई जवाब नहीं दे पाता है और कार्यकर्ता नेता से संकोच में कुछ नहीं बोलता है।नतीजा, सब गुड़ गोबर। जनप्रतिनिधियों को जनता की दुख दर्द जानने के लिए समय नहीं है तो वैसे लोगों के लिए राजनीति नहीं है। राजनीतिज्ञों के लिए अहंकार हलाहल के समान है ।जनता जिस प्यार से वोट देती है, उसी प्यार की अपेक्षा नुमाइंदों से रखती है लेकिन प्यार की बात तो दूर सिर्फ तिरस्कार मिलता है।जनता ठगा सा महसूस करती है। खुद गये सनम ,दूसरों को भी लेते गये कहावत चरितार्थ करते हैं। नुमाईंदगी एशोआराम का नाम नहीं है ।कर्तव्यपथ पर उत्तरदायित्व का निर्वाह करने का नाम है।
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