गुनाहों पर कोई कितना भी डाले पर्दा - प्रो प्रसिद्ध कुमार।
एक दिन उठ ही जाता है।
किसी की चीख ,आह जाया नहीं जाता !
खून चीख - चीख कर करती है पुकार ।
किसी की तड़प , आंसू नहीं दिखाई देती
समझो , वो नरभक्षी हो जाता है।
गुनाहों पर कोई कितना भी डाले पर्दा
एक दिन उठ ही जाता है।
पढ़कर सभी न ज्ञानी प्रबुद्ध होते
जिसका जैसा आचरण
वो वैसा ही करता ।
किसी के ज्ञान व पद के भ्रम में न पड़ना
उसके चरित्र के कसौटी पर तोलना
तभी विश्वास करना
आस्तीन के सांप चारो तरफ रहता है।
गुनाहों पर कोई कितना भी डाले पर्दा
एक दिन उठ ही जाता है।
कुकृत्य से क्या आत्मा नहीं धिक्कारती ?
जब अंतरात्मा ही मर गया है
फिर क्या कहना !
किसके लिए ये करता ?
इतना विवेक तो हो जाता ।
चाहे हुलिया लाख बदल लो ।
पहचान हो ही जाता है।
गुनाहों पर कोई कितना भी डाले पर्दा
एक दिन उठ ही जाता है।
खुद के गिरे नज़रों से
भला उसे कौन उठाता है ?
बहिरूपिया बनकर कितना भी घुमले
जमाना नब्ज़ पहचानता है।
गुनाहों पर कोई कितना भी डाले पर्दा
एक दिन उठ ही जाता है।
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