रिश्ते क्यों टूटे ? तुम रिश्तों को धंधा समझ लिया। - (कविता )- प्रो प्रसिद्ध कुमार।
मैं उसूलों में जीता रहा ।
मैं अपना समझता रहा
तू ग़ैरों की तरह दिखता रहा
मैं तुम्हें पूजता रहा
तू मुझे धिक्कारता रहा ।
रिश्ते क्यों टूटे ?
तुम रिश्तों को धंधा समझ लिया।
तुम अर्श से फर्श पर चला गया
मैं अर्श पर ही पड़ा रहा ।
क्यों ?
तुम्हारे कई खुदा बन गए
मैं खुद्दारी में खुदा को भी न समझा।
यहां कौन है , किसका भाग्यविधाता ?
जिसे समझ लिया है।
अपने स्वाभिमान को मार
खुद ज़लील कर लिया है ।
जब कठपुतली बन जायेगा ।
भले पैसे कमाएगा ।
आत्मग्लानि से हर रोज मर जायेगा।
जिसका अपना कोई ठौर नहीं
दूसरों को ठिकाना बताता है ।
वेश बदल बदल कर भेड़िया
सबको भरमाता है।
रिश्ते क्यों टूटे ?
तुम रिश्तों को धंधा समझ लिया।
बटेर लग जाये अंधे के हाथ
खुद क़ाबिल समझता है ।
पथभ्रष्ट ही औरों को पथ दिखाता है।
रिश्ते क्यों टूटे ?
तुम रिश्तों को धंधा समझ लिया।
Comments
Post a Comment