निजी स्कूलों की मनमानी ! 25 फीसदी गरीब छात्रों को मुफ्त शिक्षा देने में करती है आनाकानी !

  


आदर्श विद्यालय ,महम्मदपुर ,फुलवारी शरीफ़  में विकलांग ,भूमिहीन बाबूचक निवासी  जय कुमार व पत्नी भी विकलांग के बच्चे को अगले वर्ग में नामांकन के लिए सर्टिफिकेट नही दिया गया ,क्योंकि उसपर तीन महीने का विद्यालय का फीस बाकी है। नतीजा, अगले वर्ग में उनके बच्चे का नामांकन नहीं हो सका। यह वाकया आज मुझे सुबह जय कुमार ने बच्चों के साथ लाकर बताया। कायदे से ऐसे दिव्यांग माता पिता के बच्चों को शिक्षा के अधिकार के तहत वर्ग 1 से 8 तक निःशुल्क शिक्षा देनी चाहिए थी लेकिन विद्यालय ने क्रूरता की हद पार कर दी है। ऐसे ही बगल में कोरजी में जयपुरिया स्कूल है, जिसका नामांकन शुक्ल 80 हजार रुपये से ऊपर है। विद्यालय गांव में खुले और पढ़ने आये पटना के स्टूडेंट्स ।स्थानीय ग्रामीण स्टूडेंट्स मुँह ताकते रहे ।यह नही चलेगा।एक बड़ा आंदोलन की जरूरत है। फुलवारी प्रखंड ,अंचल ध्यान दें।

नेता क्षेत्रों में लगातार जनसंपर्क कर रहे हैं लेकिन एक भी जनप्रतिनिधि व नेता शिक्षा के अधिकार के प्रति पहल नहीं कर रहे हैं न किसी को जागरूक कर रहे हैं। प्रखंड कार्यालय में भी इस पर शिथिलता बरती जा रही है। निजी स्कूल विद्यालय में नामांकन करवाने के लिए दिन रात प्रचार प्रसार कर रहे हैं, विज्ञापन दे रहे हैं लेकिन कोई शिक्षा के अधिकार के बारे में किसी को कुछ नहीं बता रहा है।स्थानीय पंचायत स्तर के मुखिया, सरपंच ,पंचायत समिति,  प्रमुख , उपप्रमुख ,जिला परिषद  भकोल है । यही हाल नगर पंचायतों में भी है। इन क्षेत्रों में निजी विद्यालय कुकुरमुत्ते की तरह खुले हुए हैं। बात यही तक नहीं है । सीबीएससी से मान्यता प्राप्त विद्यालयों में शिक्षकों को वेतन बैंक खाते में योग्यता अनुसार 35 -40 हजार रुपये प्रति माह वेतन आते हैं लेकिन बेरोजगारी,  लाचारी का शोषण कर उन्हें  सारा रकम निकालकर मात्र 10-12 हजार रुपये वेतन रखने होते हैं और बाकी बाकी संस्थान के स्वामी को नक़द लौटा देते हैं।  क्या यह चोरी ,डकैती ,नक्सली संगठन से वे लोग कम हैं ?  इनके विरुद्ध हल्ला बोलने की जरूरत है। ऐसी कल्याणकारी योजनाओं से कोई लेना देना नहीं है ।  निजी स्कूलों में 25 फीसदी गरीब छात्रों को मुफ्त शिक्षा देने का प्रावधान है !

 आज हर जगह कुकुरमुत्ते की तरह निजी विद्यालय खुले हुए हैं। शिक्षा की नई नियमावली के तहत 25 फीसदी गरीब छात्रों को मुफ्त में शिक्षा देने का प्रावधान है।सरकार इसके एवज में प्रति  छात्र प्रति वर्ष 7-8 हजार रुपये ब्यय करती है। क्या इसका निजी स्कूलों द्वारा पालन किया जाता है ? नहीं। इसे कौन देखेगा? कुछ विद्यालय फर्जी तरीके से गरीब छात्रों को शिक्षा देने के नाम पर सरकार से रुपये ऐंठ रही है। किसी भी निजी स्कूलों में 5 किमी परिधि के अंदर के 25 फीसदी छात्रों को नामांकन हर हाल में करना है। इसकी जानकारी न स्थानीय लोगों को है और ना ही स्थानीय जनप्रतिनिधियों को है।सरकार भी इस दिशा में निष्क्रिय है। आखिर नुकसान गरीब छात्रों को ही हो रहा है।निजी स्कूलों को गरीब छात्रों के आधार कार्ड सहित पूरा विवरण अपने वेबसाइट पर और नोटिस बोर्ड पर दिखाना चाहिए।अगर कोई विद्यालय आनाकानी करता है तो उसकी मान्यता रद्द कर देना चाहिए। बिहार में शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून के तहत निजी विद्यालयों में आठवीं कक्षा तक सामाजिक व आर्थिक रूप से कमजोर (गरीब) वर्ग के बच्चों का नामांकन अनिवार्य होगा। बिहार सरकार ने आरटीई कानून को लागू कराने संबंधी नियम में बड़ा बदलाव किया है। इसके तहत शिक्षा विभाग के पोर्टल पर गरीब वर्ग के बच्चों के नामांकन लेने की पूरी प्रक्रिया की जानकारी अपलोड करना अनिवार्य कर दिया गया है।

नए नियम के मुताबिक 25 प्रतिशत आरक्षित सीटों पर जो निजी विद्यालय गरीब बच्चों का नामांकन सुनिश्चित नहीं करेंगे या फर्जीवाड़ा कर अमीर वर्ग के बच्चों का नामांकन लेंगे, उन पर प्राथमिकी दर्ज कर कार्रवाई होगी। उस विद्यालय का एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) भी रद होगी। 

इस संदर्भ में मैं कई बार स्कूल हेड का मोबाईल no मांगना चाहा लेकिन उनके स्टाफ no नही दिया।

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