वक़्फ़ विधयेक लोकसभा में पारित , स्वामीनाथन आयोग क्यों नहीं !


   

भाजपा के सहयोगी जदयू ,लोजपा, हम टीडीपी भाजपा के तलवे चाट रहे हैं, इसका खामियाजा भुगतना ही पड़ेगा। वक़्फ़ बिल में इसे मुस्लिमों की हित नज़र आ रही है तो धार्मिक न्यास परिषद में भी मुस्लिमों को भी सदस्य बनाया जाना चाहिए और तो और इस सहयोगियों को स्वामीनाथन आयोग लागू करवाने में मुंह में दही जम गई है।

 भाजपा की  घोषणपत्र में  स्वामीनाथन आयोग भूमि सुधार में निहित था ,लेकिन इसे ठंडे बस्ते में डालकर वक़्फ़ विधयेक में बड़ी फुर्ती दिखाई है। सवाल है कि  भूमिहीनों को भूमि देने में सरकार की आनाकानी क्यों ? 

आर्थिक असमानता, सामाजिक असमानता भारत जैसे समाजवादी देश में कलंक है।

देश में जितनी गैर मजरुआ, मालिक गैर मजरुआ जमीन हैं, उस पर बड़े लोगों जमीन वाले का कब्जा है । एक तरफ भूमिहीन सड़क किनारे, नहर किनारे रहने के लिए विवश हैं  , दूसरी तरफ बड़े जोत - जमीन वाले  एशोआराम से रह रहे हैं। कोई नॉकरी, व्यवसाय किये बिना भी जमीन के टुकड़े से राजशाही जिंदगी जी रहे हैं। इस असमानता को दूर करना सरकार का काम है । स्वामीनाथन आयोग में भूमि सुधार के उपाय बताए गए हैं ।मोदी सरकार की घोषणा में इसे लागू करना था,लेकिन ठंढे बस्ते में चले ।बिहार सरकार भूमिहीनों को तीन डिसमिल जमीन देने की वादा की थी, कुछ जमीन के पर्चे भी बंटे, लेकिन आज भी बहुत से उन जमीन पर पर्ची धारक के कब्जा नहीं है।भारत में ग्रामीण इलाकों में गरीब लोगों का नया आवास बनाने के लिए प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना एक बहुत ही महत्वाकांक्षी योजना केंद्र सरकार की ओर से लागू की गई है। इस योजना के तहत साल 2024 के अंत तक भारत के सभी ग्रामीण इलाकों के आवास विहीन लोगों को आवास प्रदान करने का काम केंद्र सरकार की ओर से किया जाने वाला था।     केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से की गई सामाजिक आर्थिक एवं जाति आधारित जनगणना-2011 में ग्रामीण भारत की विकट तस्वीर दिखी है। रिपोर्ट के मुताबिक गांवों में हर तीसरा परिवार भूमिहीन है और आजीविका के लिए शारीरिक श्रम के भरोसे है। यह रिपोर्ट पहली डिजिटल जनगणना है। इसके लिए दस्ती इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल किया गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि 23.52 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों में 25 से अधिक उम्र का कोई शिक्षित व्यक्ति नहीं है। यह ग्रामीण क्षेत्र के शैक्षिक पिछड़ेपन का संकेत देता है।

यह जनगणना ग्रामीण विकास मंत्रालय के तत्वाधान में 640 जिलों में की गई थी । जनगणना के मुताबिक देश में कुल 24.39 करोड़ परिवार हैं, जिनमें से 17.91 करोड़ परिवार गांवों में रहते हैं। इनमें से 10.69 करोड़ ‘वंचित’ कोटि के माने जाते हैं। वंचितों के आंकड़े से जाहिर होता है कि ग्रामीण इलाकों में 5.37 करोड़ यानि करीब (29.97 प्रतिशत) परिवार भूमिहीन हैं और उनकी आजीविका का साधन मेहनत-मजदूरी है।

यही नहीं गांवों में 2.37 करोड़ परिवार आज भी तमाम सरकारी दावों और योजनाओं के बावजूद एक कमरे के कच्चे घर में रहते हैं। गांवों में रहने वाले 21.53 प्रतिशत या 3.86 करोड़ परिवार अनुसूचित जाति-जनजाति के हैं।1932 की जाति आधारित जनगणना के सात-आठ दशक बाद अब हमारे पास यह दस्तावेज आया है। केंद्र और राज्य सरकारों समेत सभी नीति निर्माताओं के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इस दस्तावेज से हमें नीति नियोजन के लिहाज से समूहों को लक्षित कर सहायता पहुंचाने में मदद मिलेगी। सवाल है कि बिना जमीन के आवास कैसे बनेगा ? सरकार वास्तव में, आवास विहीन को आवास देना चाहती है तो सबसे पहले उसे भूमि में सुधार करना होगा, स्वामीनाथन आयोग को लागू करना होगा तो कहीं सभी के सर पर छत होंगे। 


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