भारत में सामाजिक-आर्थिक असमानता एक गंभीर और बहुआयामी समस्या ! प्रो प्रसिद्ध कुमार , अर्थशास्त्र।

      


राजनीति के लोकलुभावन घोषणाओं में भारत की मूल समस्याओं ,जिससे देश की 80 फ़ीसदी से अधिक आबादी प्रभावित है से मुद्दे गौण हैं। इसके जगह पर भड़काऊ बयान व एजेंडे चल रहा है। प्रभावित लोग इसी के मोहफास में है।आज भी आदमी को सम्मानपूर्वक इंसान बनने में जीवन खत्म हो जाता है लेकिन उसे सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार नहीं मिलता है। जिसके कई कारण हैं:

असमानता की स्थिति:

धन का असमान वितरण: भारत में धन का वितरण बहुत असमान है। एक रिपोर्ट के अनुसार, देश के शीर्ष 1% लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा है, जबकि नीचे के 50% लोगों के पास बहुत कम संपत्ति है।

आय में असमानता: आय के मामले में भी भारत दुनिया के सबसे असमान देशों में से एक है। शीर्ष 10% और शीर्ष 1% आबादी राष्ट्रीय आय का एक बड़ा हिस्सा रखती है, जबकि नीचे के 50% की हिस्सेदारी बहुत कम है।

शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक असमान पहुंच: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में बड़ी असमानता है। यह असमानता लोगों की आर्थिक और सामाजिक गतिशीलता को सीमित करती है और गरीबी के चक्र को बनाए रखती है।

रोजगार के अवसरों की कमी: गरीब और हाशिए पर रहने वाले समूहों के लिए रोजगार के अवसरों की कमी है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और खराब होती है।

सामाजिक संरचनाएं और पदानुक्रम: जाति, धर्म और लिंग जैसी पारंपरिक सामाजिक संरचनाएं भारत में अवसरों और परिणामों को आकार देती हैं। निचली जातियों और महिलाओं को शिक्षा, रोजगार और सामाजिक भागीदारी में भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी आर्थिक संभावनाएं सीमित हो जाती हैं।

भूमि सुधारों की कमी: अपर्याप्त भूमि सुधारों के कारण बड़ी संख्या में लोग भूमिहीन या अपर्याप्त भूमि वाले हैं, जिससे वे गरीबी और आर्थिक अस्थिरता के प्रति अधिक संवेदनशील हैं।

भाई-भतीजावाद: भ्रष्ट आचरण और भाई-भतीजावाद के कारण कुछ चुनिंदा लोगों के बीच धन का संचय होता है, जिससे असमानता बढ़ती है।

सामाजिक सुरक्षा जाल की कमी: अपर्याप्त सामाजिक सुरक्षा जाल और कल्याणकारी कार्यक्रम कमजोर आबादी को पर्याप्त सहायता प्रदान नहीं करते हैं, जिससे अमीरों और गरीबों के बीच की खाई चौड़ी होती है।

श्रम नीतियों की अपर्याप्तता: कमजोर श्रम बाजार नीतियां, जिनमें अपर्याप्त न्यूनतम मजदूरी नियम और सीमित सामूहिक सौदेबाजी के अधिकार शामिल हैं, आय असमानताओं में योगदान करते हैं।

तकनीकी अभाव: स्वचालन और तकनीकी प्रगति से कुछ समूहों के लिए नौकरी छूट और वेतन ठहराव होता है, जिससे आय असमानता बिगड़ती है।

ग्रामीण-शहरी विभाजन: ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं का सीमित विविधीकरण आय के अंतर में योगदान करता है। कृषि, जो ग्रामीण क्षेत्रों में आय का प्राथमिक स्रोत है, शहरी उद्योगों की तुलना में कम प्रतिफल प्रदान करती है।

असमानता के कारण:

ऐतिहासिक कारण: ऐतिहासिक काल से कुछ वर्गों के खिलाफ भेदभाव। महिलाओं को हमेशा पुरुषों से कमतर माना जाता था।

औपनिवेशिक शोषण: ब्रिटिश शासन और औद्योगीकरण ने केवल उन क्षेत्रों का विकास किया जिनमें समृद्ध विनिर्माण और व्यापारिक गतिविधियों की संभावना थी।

योजना तंत्र की विफलता: नियोजन तंत्र ने भारत के विकसित और कम विकसित राज्यों के बीच असमानता को बढ़ाया।

पिछड़े राज्यों में सहायक उद्योगों के विकास की कमी: सरकार ने पिछड़े क्षेत्रों के विकास के लिए विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण का पालन किया। हालांकि, सहायक उद्योगों के विकास की कमी के कारण, ये क्षेत्र पिछड़े रहे।

भारत की औद्योगीकरण रणनीति की विफलता: चीन के विपरीत, भारत औद्योगीकरण के अपने स्थिर इतिहास को नहीं तोड़ सका, बल्कि सेवा क्षेत्र आर्थिक विकास का चालक बन गया।

घटता सार्वजनिक निवेश: प्रति व्यक्ति एसडीपी में बढ़ती असमानता का प्राथमिक कारण 1991 के बाद के उदारीकरण युग के दौरान सार्वजनिक से निजी क्षेत्र में निवेश में वृद्धि है, जिससे प्रति व्यक्ति आय में अंतर बढ़ रहा है।

आर्थिक केंद्रों का खराब जुड़ाव: भारत के विकास केंद्र एक दूसरे से जुड़े नहीं हैं। कुछ विकास केंद्रों से फैलाव प्रभाव नहीं हुआ, जिससे राज्यों में रोजगार का असमान वितरण हुआ और गरीब राज्यों में गरीबी के क्षेत्र बन गए।

श्रम शक्ति असमानता: उत्तरी और मध्य राज्यों में, श्रम बल भागीदारी दर और नियमित वेतन वाले श्रमिकों का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत से कम है।

इंजीनियरिंग शिक्षा तक पहुंच में असमानता: 70% सीटें उच्च आय वाले राज्यों में हैं।

शिक्षा में खराब निवेश: यह 10.8% से घटकर 9.7% हो गया है।

उद्यमिता असंतुलन: वार्षिक उद्योग सर्वेक्षण 2019-20 के अनुसार, उच्च आय वाले राज्यों में लगभग 75% कारखाने और रोजगार थे।

बड़ी संख्या में अनौपचारिक रोजगार: भारतीय श्रम बल का 80% अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है। अनौपचारिक क्षेत्र की नौकरियों में नियमित वेतन और सामाजिक सुरक्षा लाभों के बिना अधिक असुरक्षा होती है। इससे औपचारिक और अनौपचारिक क्षेत्रों के बीच वेतन का अंतर बढ़ता है।

कृषि पर अत्यधिक निर्भरता: जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा अभी भी कृषि पर निर्भर है, लेकिन कुल जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी घट रही है।

अंतर-राज्य असमानताएं: विकास विभिन्न क्षेत्रों और क्षेत्रों में अलग-अलग रहा है। उदाहरण के लिए, हरित क्रांति से पूर्वी भारत की तुलना में पश्चिमी और दक्षिणी भारत को असंगत रूप से लाभ हुआ है।

वैश्वीकरण: वैश्वीकरण और अर्थव्यवस्था को खोलने से गरीबों की तुलना में अमीरों को अधिक लाभ हुआ है, जिससे असमानता बढ़ी है।

कर नीति: वस्तुओं और सेवाओं पर उच्च अप्रत्यक्ष कर गरीबों और अमीरों दोनों को समान रूप से प्रभावित करते हैं।

धन का संकेंद्रण: कुछ व्यक्तियों या परिवारों के हाथों में धन का संकेंद्रण।

यह असमानता भारत के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए एक बड़ी चुनौती है, जिससे गरीबी, सामाजिक अशांति और अवसरों की कमी जैसी समस्याएं पैदा होती हैं।

सरकार को इन समस्याओं के निदान के लिए अविलंब ठोस कदम उठानी चाहिए।

Comments

Popular posts from this blog

डीडीयू रेल मंडल में प्रमोशन में भ्रष्टाचार में संलिप्त दो अधिकारी सहित 17 लोको पायलट गिरफ्तार !

जमालुद्दीन चक के पूर्व मुखिया उदय शंकर यादव नहीं रहे !

यूपीएससी में डायरेक्ट लेटरल एंट्री से बहाली !आरक्षण खत्म ! अब कौन धर्म खतरे में है !