दानापुर में एक पुरानी गाथा ( कविता )- प्रो प्रसिद्ध कुमार।


    



एन. सी. घोष, था सबका नाता।

अंग्रेज़ों का गढ़, फिर सबका द्वार,

संस्कृति का था वो, प्यारा मीनार।

सड़क बनी, टूटा वो निशान,

कलाकारों का, दिल हुआ हैरान।

सिनेमा हॉल भी, गया वो खो,

आँखों में उनकी, बस नमी हो।

डीआरएम ने, फिर दी ये आस,

नया भवन, लिए आधुनिक खास।

बारह करोड़ का, सपना साकार,

दो साल में, होगा तैयार।

पार्किंग, मीटिंग, बड़ा सा हॉल,

कला को मिलेगी, फिर से चाल।

कलाकार बोले, "आभार है आपका,

रियायत मिले, ये है गुज़ारिश सबका।"

उम्मीद की किरण, फिर चमकेगी,

दानापुर की कला, फिर से दमकेगी।

नए रंग, नई उमंग, नई उड़ान,

संस्कृति का फिर, होगा उत्थान।

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