पटना ग्रामीण भूमि का कृषि से व्यावसायिक/आवासीय उपयोग ,राजस्व की चोरी !

 



 


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 पटना और उसके आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि भूमि का धड़ल्ले से आवासीय और व्यावसायिक उपयोग में परिवर्तन, एक बड़े पैमाने पर राजस्व चोरी का संकेत दे रहा है। दानापुर के गोला रोड, रूपसपुर, अशोपुर, फुलवारी के नोहसा नवादा, भुसौला, परसा, एतवारपुर, पुनपुन, पटना सिटी के आसपास, हाजीपुर, सोनपुर और बिहटा जैसे क्षेत्रों में यह प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है। कृषि भूमि को कम दरों पर खरीदकर उसे व्यावसायिक या आवासीय परियोजनाओं में बदला जा रहा है, जिससे भू-राजस्व और निबंधन विभाग को भारी राजस्व का नुकसान हो रहा है।

राजस्व चोरी का तरीका:

वर्तमान नियमों के अनुसार, कृषि भूमि की खरीद-बिक्री पर लगने वाला स्टाम्प शुल्क और निबंधन शुल्क, व्यावसायिक या आवासीय भूमि की तुलना में काफी कम होता है। भू-माफिया और बड़े बिल्डर इस loophole का फायदा उठा रहे हैं। वे कृषि भूमि को कृषि प्रयोजन के नाम पर खरीदते हैं, जिससे उन्हें कम शुल्क देना पड़ता है। बाद में, बिना उचित प्रक्रिया का पालन किए और बिना भूमि के वर्गीकरण को बदले, उस पर आवासीय कॉलोनी या व्यावसायिक प्रतिष्ठान का निर्माण कर देते हैं। इस प्रकार, वे भूमि के वास्तविक मूल्य और उपयोग के अनुरूप देय उच्च राजस्व से बच जाते हैं।

इस पूरे खेल में प्रभावशाली लोगों की संलिप्तता के गंभीर आरोप लग रहे हैं। इन क्षेत्रों में खरीदी गई ऐसी भूमियों के खरीदारों में उच्च अधिकारी, राजनेता, मंत्री, न्यायपालिका से जुड़े लोग, पुलिस अधिकारी, डॉक्टर, इंजीनियर और सचिव जैसे बड़े ओहदे के लोग शामिल हैं। यह स्थिति इस बात को और भी गंभीर बना देती है कि कहीं न कहीं प्रभावशाली लोगों की मिलीभगत से ही यह अवैध गतिविधि फल-फूल रही है।


भूमि उपयोग परिवर्तन  के लिए सरकार द्वारा निर्धारित एक विस्तृत प्रक्रिया है, जिसमें संबंधित विभागों से अनुमति लेना और निर्धारित शुल्क का भुगतान करना शामिल है। इन मामलों में, अक्सर इन प्रक्रियाओं की अनदेखी की जा रही है। इसका सीधा प्रभाव न केवल सरकारी खजाने पर पड़ रहा है, बल्कि शहरी नियोजन, कृषि उत्पादन और पर्यावरणीय संतुलन पर भी नकारात्मक असर पड़ रहा है।

कृषि उत्पादन पर असर: कृषि भूमि के लगातार गैर-कृषि उपयोग में बदलने से राज्य की कृषि क्षमता प्रभावित हो रही है, जिससे खाद्य सुरक्षा पर भी दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है।

शहरी नियोजन में बाधा: अनियोजित विकास से शहरों पर अनावश्यक दबाव बढ़ रहा है, जिससे बुनियादी ढांचा (सड़कें, पानी, सीवरेज आदि) चरमरा रहा है।

पर्यावरणीय क्षति: कृषि भूमि के कटाव और कंक्रीट के जंगलों के विस्तार से पर्यावरण संतुलन बिगड़ रहा है, जिससे बाढ़, जलभराव और भूजल स्तर में गिरावट जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।

राजस्व विभाग और निबंधन विभाग की भूमिका पर सवाल:

यह एक बड़ा सवाल है कि जब इतनी बड़ी मात्रा में कृषि भूमि का अवैध रूप से गैर-कृषि उपयोग में परिवर्तन हो रहा है, तो भू-राजस्व विभाग और निबंधन विभाग की भूमिका क्या है? क्या उनकी तरफ से पर्याप्त निगरानी नहीं हो रही है, या इसमें मिलीभगत है? इन विभागों की जिम्मेदारी है कि वे भूमि के वास्तविक उपयोग की जांच करें और यह सुनिश्चित करें कि सरकार को उसका उचित राजस्व प्राप्त हो।

इस पूरे मामले की गहन जांच की आवश्यकता है। सरकार को चाहिए कि: अवैध रूप से भूमि उपयोग परिवर्तन करने वाले भू-माफिया और बिल्डरों के खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई की जाए।

प्रभावशाली लोगों की जांच: उन प्रभावशाली लोगों की सूची तैयार की जाए जिन्होंने इस तरह की भूमि खरीदी है और उनकी भूमिका की जांच की जाए।भूमि उपयोग परिवर्तन के नियमों को और सख्त बनाया जाए और उनके अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए निगरानी तंत्र को मजबूत किया जाए।

राजस्व विभागों की जवाबदेही: भू-राजस्व और निबंधन विभाग के अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाए और लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।आम जनता को भूमि उपयोग परिवर्तन के नियमों और इसके नकारात्मक प्रभावों के बारे में जागरूक किया जाए।

यह एक ऐसा मुद्दा है जो न केवल सरकारी राजस्व को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि राज्य के भविष्य और विकास पर भी गहरा असर डाल रहा है। इस पर तत्काल ध्यान देना और ठोस कदम उठाना अत्यंत आवश्यक है।


 

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