अजित अकेला: एक नाम, एक आवाज़, एक अनमोल विरासत

   



आज 28 जून, 2025 है, और आज ही के दिन 2017 में हमने एक अनमोल रत्न, अजित अकेला को खो दिया था। उनके जाने को आठ साल हो गए हैं, लेकिन उनकी आवाज़ का जादू, उनके गाए गीतों की धुनें, और उनकी यादें आज भी हमारे दिलों में ताज़ा हैं। उन्हें भूल पाना सचमुच नामुमकिन है, और क्यों न हो, उनकी गायकी में वो आत्मा थी जो सीधा हृदय को छू जाती थी। पटना में कई बार उनके साथ बैठकर गीत संगीत का संगति करने का अवसर मिला था।

पटना जिले के फत्तेपुर गांव के रहने वाले अजित अकेला सिर्फ एक गायक नहीं थे, बल्कि एक ऐसे कलाकार थे जिन्होंने भोजपुरी संगीत को एक नई पहचान दी। संपतचक प्रखंड के इस छोटे से गांव से निकलकर, वह अपनी आवाज़ का जादू देश-विदेश तक बिखेरने में कामयाब रहे। मॉरीशस और सूरीनाम जैसे देशों में उनके कार्यक्रम इस बात का प्रमाण हैं कि उनकी कला की कोई सीमा नहीं थी।

पटना कॉलेजिएट स्कूल में शिक्षक के रूप में अपने कर्तव्य का पालन करते हुए भी उन्होंने संगीत के प्रति अपने प्रेम को कभी कम नहीं होने दिया। यह दर्शाता है कि वह सिर्फ एक कलाकार ही नहीं, बल्कि एक प्रतिबद्ध व्यक्ति थे जो अपने हर काम को पूरी निष्ठा से करते थे।

उनके पारम्परिक गीत जैसे "चलल जाला चलल जाला हो सड़किया पे गाड़ी हमार बैलगाड़ी", "झामलाल बुढ़वा पिटे कपार", "गंगा माई के ऊँची रे अररिया", "धनिया ला लेले ऑइल", और "कौन रासिक्वा देवी के मनवेल हो रामा" आज भी उनकी पहचान बने हुए हैं। ये ऐसे गीत हैं जो हमारे कंठहार बन गए थे, और आज भी यूट्यूब पर इन्हें सुनकर उनकी आवाज़ के जादू का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। उनकी आवाज़ में वो मिट्टी की खुशबू थी, वो ठेठपन था जो सीधा आत्मा से जुड़ जाता था।

भोजपुरी फिल्मों में भी उनके गाए गीत आज भी हमें उनकी याद दिलाते हैं। उन्होंने न सिर्फ अपनी आवाज़ से लाखों लोगों का मनोरंजन किया, बल्कि भोजपुरी संस्कृति और विरासत को भी समृद्ध किया।

आज जब हम उन्हें याद कर रहे हैं, तो मन में एक खालीपन सा महसूस होता है। अजित अकेला जैसे कलाकार सदियों में एक बार आते हैं। उनकी आवाज़ भले ही आज हमारे बीच न हो, लेकिन उनके गीत हमेशा हमें प्रेरित करते रहेंगे और हमारी स्मृतियों में जीवित रहेंगे। वह सचमुच एक युगपुरुष थे, जिनकी अनुपस्थिति भोजपुरी संगीत जगत में हमेशा महसूस की जाएगी।


अजित अकेला अमर रहें!



 

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