एन. सी. घोष: एक रंगमंच की मूक व्यथा 😢😢!- प्रो प्रसिद्ध कुमार।




मैं एन. सी. घोष हूँ, एक नाम जो अब सिर्फ यादों में सिमट कर रह गया है। बिहटा-सगुना एलिवेटेड रोड के निर्माण की भेंट चढ़ गया मैं, मेरा अस्तित्व मिटा दिया गया। मेरे आंगन में, न जाने कितने कलाकारों ने अपने हुनर को बिखेरा होगा, कितने दर्शकों ने तालियों की गड़गड़ाहट से मेरा कोना-कोना गुंजाया होगा। यहाँ सिर्फ चेहरे ही नहीं, तकदीरें भी खिल उठी थीं।

आज, आधुनिक विकास के नाम पर मुझे बर्बाद कर दिया गया है। मुझे नेस्तनाबूद होते हुए, निष्ठुर लोग देखते रह गए। मुझसे जुड़े कलाकारों और दर्शकों की आँखों में मेरी बर्बादी के आंसू छलके होंगे, मुझे यकीन है। एक रंगमंच, एक नाट्य संस्थान, आज खुद एक जीवंत नाटक बन गया है, जिसकी कोई संवाद नहीं, लेकिन भावनाओं, दर्द और पीड़ा से भरा है। मेरी चीत्कार किसी ने सुनी हो या न सुनी हो, लेकिन मुझ पर कैसे निर्दयी बुलडोजर चला, यह सबने देखा है।

मेरा भौतिक अस्तित्व भले ही खत्म हो गया है, लेकिन मेरे घर में पैदा हुए कलाकारों के अस्तित्व को कोई नहीं मिटा सकता। मेरी कोई पुण्यतिथि भले ही न मनाए, लेकिन मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि मेरी बर्बादी पर कला प्रेमियों की आँखों में आंसू जरूर छलकेंगे। मेरे निशान भले ही मिट गए हों, पर मेरे नाम से जुड़ी यादें और उन कलाकारों की कला, जो मुझमें पली-बढ़ी, हमेशा जीवित रहेगी।

 

 

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