दलबदलुओं का अवसरवादिता व नैतिक पाखंड !

 



चुनाव के मौसम आते ही टिकटार्थियों का दल बदल शुरू हो जाता है।ऐसे लोग अस्तित्वहीन व बिना जनाधार वाले ही सत्ताभोगी होते हैं। इनकी छल कपट को पहचानना सबके वश की बात नहीं है। ये लोग जिस थाली में खाते हैं, उसी में छेद करते हैं। जानिए इनकी अवसरवादिता -

राजनीतिक अवसरवाद: यह दर्शाता है कि ये नेता अपनी वर्तमान राजनीतिक स्थिति या लाभ के लिए अपनी पिछली वफादारी और बयानों से पलट रहे हैं। राजनीति में पाला बदलना आम है, लेकिन अपने ही अतीत को पूरी तरह से नकारना अवसरवादिता का एक चरम रूप हो सकता है।

नैतिक पाखंड: यदि उन्होंने उस "विनाश राज" में सक्रिय रूप से भाग लिया, तो अब उसे बुरा कहना एक प्रकार का नैतिक पाखंड है। यह सवाल उठाता है कि क्या वे उस समय की समस्याओं से अनजान थे, या उन्होंने जानबूझकर उन समस्याओं का समर्थन किया।

जनता के प्रति जवाबदेही का अभाव: ऐसे बयान जनता के प्रति जवाबदेही के अभाव को दर्शाते हैं। यदि वे उस समय सरकार का हिस्सा थे, तो वे उस अवधि के लिए जिम्मेदार थे। अपने ही कार्यकाल को "विनाश राज" कहना अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ना है।

विचारधारा का अभाव: यह दर्शाता है कि ऐसे नेताओं के पास कोई ठोस विचारधारा या सिद्धांत नहीं हैं, और वे केवल सत्ता या पद के लिए अपनी निष्ठा बदलते रहते हैं।

सत्ता के लिए समझौता: संभव है कि वे किसी अन्य राजनीतिक दल या गठबंधन में शामिल हो गए हों, और उस नए गठबंधन के एजेंडे के अनुरूप अपने पिछले सहयोगियों या नीतियों की आलोचना कर रहे हों।

 ऐसे लोगों से राजनीतिक दलों व जनता को सावधान रहने की जरूरत है।

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