कबीर की अमर वाणी: युगों-युगों तक प्रासंगिक-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

 




कबीर वो प्रकाश, जो अंधियारे को चीर गया,

अज्ञानता के जालों को, अपनी बातों से भेद गया।

समता और प्रेम का, दिखाया सच्चा मार्ग,

उनकी वाणी में गूँजता, आज भी वो अनुराग।

१. सामाजिक समरसता के प्रहरी

जाति-पाति का भेद मिटाया, सब मानव एक समान,

कहा उन्होंने, "जाति-पाति पूछे न कोई, हरि को भजे सो हरि का होई।"

छुआछूत, ऊँच-नीच को, उन्होंने नकारा था,

हर प्राणी में देखा, ईश्वर का ही कारा था।


२. पाखंड और आडंबर पर प्रहार

बाहरी दिखावे से क्या होगा, मन जो तेरा मैला है,

"पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय,

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।"

मंदिर-मस्जिद में ईश्वर नहीं, वो तेरे भीतर है,

खोज ले खुद में ही उसे, वो तेरा सच्चा मीत है।


३. हिन्दू-मुस्लिम एकता के सूत्रधार

एक ही ईश्वर के बच्चे हम, चाहे नाम अलग-अलग,

"हिंदू कहें मोहे राम पियारा, तुरुक कहें रहमाना,

आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।"

सबको साथ लाने की, उनकी थी एक आस,

मिटाकर द्वेष को, फैले प्रेम का वास।


४. निर्गुण भक्ति का अनुपम संदेश

ईश्वर निराकार है, न उसका कोई रूप,

"कस्तूरी कुंडली बसे, मृग ढूंढे बन माहि,

ऐसे घट-घट राम है, दुनिया देखे नाहि।"

मूर्ति पूजा से परे, आत्मज्ञान का आह्वान,

गुरु की महिमा गाते, मोक्ष का करते बखान।


५. लोकभाषा में ज्ञान का संचार

उनकी वाणी सधुक्कड़ी, जन-जन तक पहुँची थी,

ब्रज, अवधी, पंजाबी, हर बोली में गूँजी थी।

सरल दोहों में गहरे अर्थ, जो दिल को छू जाते हैं,

आज भी उनके उपदेश, राह दिखाते जाते हैं।


६. नैतिक मूल्यों के प्रेरक

सत्य, अहिंसा, दया, प्रेम, ये उनके थे आधार,

अहंकार और लोभ का, किया था उन्होंने संहार।

निःस्वार्थ सेवा का, दिया अनमोल विचार,

एक समतावादी समाज का, देखा उन्होंने सार।

७. गुरु की महिमा और विरासत

गुरु को ईश्वर तुल्य माना, दिया सम्मान अपार,

"गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय,

बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।"

कबीर पंथ बना, उनकी शिक्षाओं का प्रतीक,

गुरु ग्रंथ साहिब में भी, उनके वचन हैं सटीक।


कबीर की वाणी आज भी, प्रासंगिक है उतनी,

हर दिल में जगाती है, प्रेम की एक रोशनी।

उनके दोहे, उनके विचार, हैं अमर संदेश,

जो दिखाते हैं हमें, एक सुंदर, शांतिपूर्ण देश।



 

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