अहमदाबाद की धरती पर, गूँजा था एक हाहाकार,
आँखों में आँसू, दिल में हाहाकार।
काले धुएँ की चादर में, लिपट गया संसार।
वो नभ का पंछी, क्यों राह भटक गया,
हँसते-खेलते जीवन को, पल भर में निगल गया।
शोर मचा, चीखें उठीं, हर ओर मची अफरातफरी,
अपनों की तलाश में, हर आँख हुई थी नम भरी।
मासूम बचपन, वृद्धों की आस, सब एक पल में राख हुए,
न जाने कितने सपने, आज अनजाने में ख़ाक हुए।
किसी माँ की गोद सूनी, किसी पिता का कंधा खाली,
हर घर में मातम छाया, हर आत्मा हुई व्याकुल-निराली।
छिन गए वो पल हँसी के, अब बस सिसकियाँ हैं बाकी,
कैसे सहें ये चोट गहरी, हर साँस हुई है फाँकी।
पिता की आँखों में था एक सुनहरा सपना,
बेटी से मिलने की आस, हर पल था अपना।
वो चले थे खुशी से, मन में थी एक उमंग,
किंतु भाग्य का खेल देखो, बिखर गई हर तरंग।
जो खुशी थी दिल में, वो दर्द में बदल गई,
पंखुड़ी सी आस, आँसुओं में घुल गई।
यादें बन गईं अब दर्द का, एक अनमिट सा अतीत,
कैसे भूलें वो पल, जब सब हुआ वीरान, सब कुछ हुआ विपरीत।
ईश्वर से बस यही प्रार्थना, शांति मिले हर आत्मा को,
और शक्ति मिले उन सबको, जो खो चुके हैं अपने को।
ये हादसा नहीं, एक घाव है, जो गहरा निशान छोड़ गया,
दिल के हर कोने में, एक अनबुझा दर्द छोड़ गया।
आँखों में आँसू, दिल में हाहाकार,
अहमदाबाद का दर्द, भुला नहीं सकता संसार।
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