सहकारिता विभाग नुक्कड़ नाटक की निविदा में सुधार कर जमीनी कलाकारों को मौका दे बिहार सरकार !

    




यदि पुरानी संस्थाओं को नए नियमों के कारण बाहर किया जा रहा है, तो यह न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ हो सकता है, खासकर यदि उन्हें नियमों में बदलाव की जानकारी पहले नहीं दी गई थी.

यदि पूर्व में एक निष्पक्ष प्रक्रिया के तहत संस्था का चुनाव हो चुका था, तो नया नोटिस जारी करना उस प्रक्रिया का सीधा उल्लंघन है. इससे विभाग की पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल उठता है.

यह बिहार सरकार द्वारा 'किसान सहकारी चौपाल' हेतु नुक्कड़ नाटक के लिए जारी की गई अल्पकालिक निविदा में वित्तीय वर्ष में टर्नओवर की शर्त को ₹10 लाख से बढ़ाकर ₹30 लाख करना, कलाकारों के लिए निश्चित रूप से उचित नहीं है। इसके कई नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं:

छोटे कलाकारों/समूहों का बाहर होना: ₹30 लाख का टर्नओवर छोटे नुक्कड़ नाटक समूहों या स्वतंत्र कलाकारों के लिए एक बहुत बड़ी बाधा है। अधिकांश ऐसे समूह शायद ही इतना टर्नओवर अर्जित कर पाते हैं। इससे वे इस महत्वपूर्ण सरकारी पहल में भाग लेने से वंचित हो जाएंगे।

बड़े पूंजीपतियों का एकाधिकार:  इस बढ़ी हुई शर्त का सीधा लाभ बड़े पूंजीपतियों या बड़े प्रोडक्शन हाउस को मिलेगा। वे आसानी से इस शर्त को पूरा कर लेंगे और प्रतिस्पर्धा कम होने के कारण इस टेंडर को हासिल करने में सफल होंगे।

कला और गुणवत्ता पर प्रभाव: नुक्कड़ नाटक अक्सर स्थानीय मुद्दों, ग्रामीण परिवेश और जमीनी हकीकत को दर्शाने का सशक्त माध्यम होता है। छोटे कलाकार और समूह अक्सर इन विषयों पर अधिक प्रामाणिक और प्रभावी तरीके से काम करते हैं। बड़े कॉर्पोरेट घराने, जिनका मुख्य ध्यान लाभ पर होता है, शायद नुक्कड़ नाटक की आत्मा को उतनी गहराई से न समझ पाएं या उसे व्यावसायिक दृष्टिकोण से देखें, जिससे कला की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है।

स्थानीय प्रतिभाओं का दमन: बिहार में कई प्रतिभाशाली नुक्कड़ नाटक समूह और कलाकार हैं जो सीमित संसाधनों में भी उत्कृष्ट कार्य करते हैं। यह बढ़ी हुई शर्त उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने और सरकारी योजनाओं में योगदान करने से रोकेगी।

कलाकार समुदाय में असमानता: यह निर्णय कलाकार समुदाय में बड़े और छोटे समूहों के बीच खाई को और बढ़ाएगा, जिससे छोटे कलाकारों में हताशा और अलगाव की भावना आ सकती है।

सरकार को इस पर पुनर्विचार क्यों करना चाहिए:

जनभागीदारी को बढ़ावा: 'किसान सहकारी चौपाल' जैसी पहल का उद्देश्य किसानों तक पहुंचना और जागरूकता फैलाना है। इसमें स्थानीय कलाकारों और समूहों की भागीदारी जनभागीदारी को और मजबूत करती है।

लघु उद्योगों और कलाकारों का समर्थन: सरकार की नीतियों का उद्देश्य छोटे व्यवसायों और कला को भी बढ़ावा देना होता है। यह शर्त इस उद्देश्य के विपरीत है।

विविधता और रचनात्मकता: छोटे समूह अक्सर अधिक रचनात्मक और अभिनव होते हैं क्योंकि वे अपने काम में अधिक व्यक्तिगत रुचि लेते हैं।

कुल मिलाकर, यह कदम छोटे और मध्यम स्तर के नुक्कड़ नाटक कलाकारों और समूहों के लिए हानिकारक है और इससे सरकारी योजना के मूल उद्देश्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। सरकार को इस शर्त पर पुनर्विचार करना चाहिए और ऐसी नीतियां बनानी चाहिए जो सभी स्तर के कलाकारों को समान अवसर प्रदान करें।



 

Comments

Popular posts from this blog

डीडीयू रेल मंडल में प्रमोशन में भ्रष्टाचार में संलिप्त दो अधिकारी सहित 17 लोको पायलट गिरफ्तार !

जमालुद्दीन चक के पूर्व मुखिया उदय शंकर यादव नहीं रहे !

यूपीएससी में डायरेक्ट लेटरल एंट्री से बहाली !आरक्षण खत्म ! अब कौन धर्म खतरे में है !