बिहार में क्यों बेखौफ हैं अपराधी? हाल की घटनाओं से उठे गंभीर सवाल !
बिहार में अपराध की बढ़ती घटनाएं, खासकर हाल ही में हुई कुछ जघन्य हत्याएं, राज्य की कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर रही हैं। उद्योगपति गोपाल खेमका और 7 साल पहले उनके पुत्र की हाजीपुर में हुई निर्मम हत्या, और सिवान में तीन भाइयों की नृशंस हत्या, यह दर्शाता है कि अपराधी अब किसी भी हद तक जाने से नहीं डर रहे हैं। आखिर क्यों अपराधी इतने बेखौफ हो गए हैं?
अपराधियों के बेखौफ होने के प्रमुख कारण
कई कारक हैं जो बिहार में अपराधियों को खुली छूट दे रहे हैं:
कमजोर कानून व्यवस्था और पुलिस की निष्क्रियता: अक्सर देखा जाता है कि पुलिस की प्रतिक्रिया धीमी होती है और गश्त अपर्याप्त। आपराधिक मामलों में त्वरित और प्रभावी जांच का अभाव अपराधियों को यह संदेश देता है कि उन्हें आसानी से पकड़ा नहीं जा सकता।
न्यायिक प्रक्रिया में देरी: अदालती मामलों का लंबा खिंचना और दोषियों को सजा मिलने में लगने वाला अत्यधिक समय अपराधियों के मन से कानून का डर खत्म कर देता है। जमानत पर छूटे अपराधी अक्सर फिर से अपराधों में शामिल हो जाते हैं, जिससे कानून का मजाक उड़ता है।
पुलिस बल में कमी और संसाधनों का अभाव: बिहार में पुलिसकर्मियों की संख्या राज्य की आबादी के अनुपात में काफी कम है। इसके अलावा, आधुनिक उपकरणों और उचित प्रशिक्षण की कमी भी पुलिस की कार्यक्षमता को प्रभावित करती है, जिससे वे अपराधियों का प्रभावी ढंग से मुकाबला नहीं कर पाते।
राजनीतिक संरक्षण और प्रभाव: कई बार अपराधियों को सत्ताधारी या प्रभावशाली लोगों का संरक्षण मिलता है, जिससे वे कानून की गिरफ्त से बच निकलते हैं। यह राजनीतिक दखल पुलिस के मनोबल को भी तोड़ता है।
हथियारों की आसान उपलब्धता: अवैध हथियारों की तस्करी और आसान उपलब्धता भी अपराधों को बढ़ावा देती है। अपराधियों को आसानी से हथियार मिल जाते हैं, जिससे वे अपने मंसूबों को अंजाम दे पाते हैं।
बढ़ती बेरोजगारी और आर्थिक असमानता: राज्य में बढ़ती बेरोजगारी और गहराती आर्थिक असमानता भी कुछ लोगों को अपराध की राह पर धकेलने में सहायक हो सकती है। हताशा और गरीबी कभी-कभी लोगों को गलत रास्ते पर ले जाती है।
सरकार की क्या है जिम्मेदारी?
राज्य में शांति और व्यवस्था बनाए रखना और नागरिकों के जीवन व संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है। इस गंभीर स्थिति से निपटने के लिए सरकार को तत्काल और प्रभावी कदम उठाने होंगे:
पुलिस बल का आधुनिकीकरण और सुदृढ़ीकरण: सरकार को पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ानी चाहिए, रिक्त पदों को भरना चाहिए और उन्हें आधुनिक प्रशिक्षण, उपकरण व प्रौद्योगिकी (जैसे सीसीटीवी कैमरे, ड्रोन निगरानी और डेटा विश्लेषण उपकरण) प्रदान करनी चाहिए। साथ ही, पुलिस की जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है।
फास्ट-ट्रैक अदालतों की स्थापना: आपराधिक मामलों की सुनवाई में तेजी लाने के लिए विशेष अदालतों का गठन किया जाना चाहिए। दोषियों को त्वरित और कठोर सजा मिलने से अपराधियों में कानून का डर पैदा होगा।
खुफिया तंत्र को मजबूत करना: अपराधियों और आपराधिक गिरोहों के बारे में जानकारी जुटाने के लिए खुफिया तंत्र को अधिक सक्रिय और प्रभावी बनाया जाना चाहिए। पुलिस विभागों के बीच सूचना साझाकरण और समन्वय में सुधार आवश्यक है।
अवैध हथियारों पर नकेल: हथियारों की तस्करी और अवैध निर्माण पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। पुलिस को नियमित रूप से तलाशी अभियान चलाने चाहिए ताकि अवैध हथियारों का जखीरा पकड़ा जा सके।
सामुदायिक पुलिसिंग को बढ़ावा: पुलिस और आम जनता के बीच विश्वास का माहौल बनाना बेहद जरूरी है। नागरिकों को अपराधों की रिपोर्ट करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और पुलिस को उनकी शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए।
राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रदर्शन: सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी अपराधी को राजनीतिक संरक्षण न मिले। कानून का शासन सर्वोपरि होना चाहिए और किसी भी दबाव में नहीं आना चाहिए।
गोपाल खेमका और उनके पुत्र की हत्या, और सिवान में तीन भाइयों की हत्या जैसी घटनाएं केवल आपराधिक मामले नहीं हैं, बल्कि यह राज्य में व्याप्त असुरक्षा की भावना का प्रतीक हैं। सरकार को इन घटनाओं को गंभीरता से लेना चाहिए और नागरिकों के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ठोस और निर्णायक कदम उठाने चाहिए। केवल तभी अपराधी बेखौफ होकर घूमना बंद करेंगे और बिहार के लोगों में सुरक्षा की भावना बहाल होगी।
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