बिहार के पूर्णिया में अंधविश्वास की आग में भस्म हुआ परिवार: कहाँ है सुशासन ?😢😢
बिहार के पूर्णिया जिले के टेटागामा गांव में हुई दिल दहला देने वाली घटना ने इंसानियत को शर्मसार कर दिया है। तंत्र-मंत्र और झाड़-फूंक के अंधविश्वास में एक पूरे परिवार के पांच लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई, और तो और उनके शवों को जलाकर सबूत मिटाने का भी प्रयास किया गया। यह घटना न केवल कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करती है, बल्कि समाज में गहरे जड़ जमाए अंधविश्वास के काले सच को भी उजागर करती है, जो आज भी 21वीं सदी में इंसानियत को भस्म कर रहा है।
यह सवाल उठना लाज़मी है कि जब यह सब हो रहा था, तब बिहार सरकार कहाँ सोई हुई थी? यह सिर्फ एक आपराधिक घटना नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना और प्रशासनिक निष्क्रियता का भी एक भयावह उदाहरण है।
इस हृदय विदारक घटना पर कबीर की वाणी हमें पाखंड और ढोंग पर विचार करने को मजबूर करती है:
कबीर मनवा भया उदास, जब देखा जग अंधियारा।
ज्ञान बिना नर भटकत डोले, जैसे मृग जल बिन हारा॥
कबीर ने हमेशा अज्ञानता और पाखंड पर प्रहार किया। टेटागामा की घटना उसी अज्ञानता का वीभत्स परिणाम है, जहाँ ज्ञान की कमी और अंधविश्वास ने लोगों को इतना अंधा कर दिया कि वे मनुष्यता की सारी हदें पार कर गए। यह दिखाता है कि कैसे समाज में विवेक और तर्क का अभाव लोगों को बर्बरता की ओर धकेल देता है।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥
कबीर ने बाहरी ज्ञान और कर्मकांडों से अधिक प्रेम और मानवता के महत्व पर जोर दिया। इस घटना में प्रेम और मानवता का घोर अभाव दिखाई देता है। जब पूरा गाँव इस नरसंहार में शामिल बताया जा रहा है, तो यह दर्शाता है कि कैसे सामूहिक अज्ञानता और अंधविश्वास ने सहिष्णुता और करुणा को निगल लिया।
कबीर कुआँ एक है, पानी भरे अनेक।
बर्तन में ही भेद है, पानी सब में एक॥
कबीर की यह वाणी हमें समानता और एकता का संदेश देती है। लेकिन टेटागामा में जो हुआ, वह इस संदेश के बिल्कुल विपरीत है। यहाँ एक ही समाज के लोगों ने अंधविश्वास के नाम पर दूसरे मनुष्यों की जान ले ली, जो दर्शाता है कि कैसे धर्म और पाखंड के नाम पर इंसान-इंसान में भेद पैदा कर दिया जाता है।
यह घटना हमें आत्मचिंतन करने पर मजबूर करती है कि 21वीं सदी में भी हम किस तरह के समाज में जी रहे हैं, जहाँ अंधविश्वास की जड़ें इतनी गहरी हैं कि वे खून-खराबे का कारण बन जाती हैं। जब तक हम अज्ञानता के इस अंधियारे को ज्ञान के प्रकाश से दूर नहीं करेंगे, तब तक ऐसी हृदय विदारक घटनाएँ हमें शर्मसार करती रहेंगी।
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