नीतीश के राज में 'परिवारवाद' की नई मिसाल? विकास की राह में अपनों का स्वार्थ!
परसा-संपतचक रोड विवाद: किसानों की जमीन बनाम मुख्यमंत्री के रिश्तेदार
आज की धरना चीख-चीख कर कह रही है कि बिहार में विकास की परिभाषा बदल गई है। यह अब जनता की भलाई नहीं, बल्कि 'अपनो' के स्वार्थ की पूर्ति है!
"नया अलाईनमेंट चेंज करो संघर्ष समिति" के बैनर तले, परसा–संपतचक रोड के चौड़ीकरण को लेकर चल रहे तीन दिवसीय धरने का दूसरा दिन, एक बड़े राजनीतिक घोटाले की गवाही देता है। सत्ता के गलियारों से उठकर ज़मीन पर आए इस विवाद में, एक तरफ 17 बीघा ज़मीन खोने वाले बेबस किसान हैं, और दूसरी तरफ, कथित तौर पर मुख्यमंत्री के रिश्तेदार!
विधायक गोपाल रविदास का विस्फोटक आरोप: "यह परिवारवाद नहीं तो और क्या है?"
धरना स्थल पर पहुंचे विधायक गोपाल रविदास ने जो खुलासा किया है, वह राज्य सरकार की नीयत पर एक काला धब्बा है। उनका आरोप सीधा और तीखा है:
पुराना अलाईनमेंट मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के प्रगति यात्रा के दौरान खुद उनके निर्देश पर स्वीकृत हुआ था। इस पर टेंडर भी स्वीकृत हो गया था और निर्माण शुरू होने वाला था। इसमें केवल 4 बीघा ज़मीन प्रभावित हो रही थी, और राजस्व का नुकसान भी कम था।
लेकिन, अचानक, पुराने टेंडर को रद्द कर दिया गया! क्यों? विधायक का आरोप है कि यह सब मुख्यमंत्री के रिश्तेदारों के दबाव में हुआ, जिनकी ज़मीन पुराने अलाईनमेंट में आ रही थी!
इसके बाद, एक नया अलाईनमेंट तैयार किया गया, जिसमें किसानों की 17 बीघा जमीन जबरन ली जा रही है और बिहार सरकार को ज़्यादा राजस्व का नुकसान होगा!
विधायक गोपाल रविदास का यह प्रश्न कि "यह क्या परिवारवाद का उदाहरण नहीं है तो क्या है?" हवा में नहीं गूँज रहा, बल्कि सीधे मुख्यमंत्री आवास की दीवारों से टकरा रहा है। क्या जनता की जमीन अपनों की संपत्ति बचाने के लिए कुर्बान की जाएगी? क्या बिहार में विकास अब 'रिश्तेदार पहले, किसान बाद में' के सिद्धांत पर चलेगा?
अस्थायी राहत पर अंतिम चेतावनी: आंदोलन जारी रहेगा!
किसानों के इस निर्णायक धरने को महागठबंधन कार्यकर्ताओं (भाकपा-माले, राजद) और जनप्रतिनिधियों का पूर्ण समर्थन मिला। 'भूमि बचाओ, घर बचाओ', 'नया अलाईनमेंट रद्द करो', 'पुराने अलाईनमेंट पर रोड बनाओ' जैसे नारों के बीच, प्रशासनिक अमला धरना स्थल पर पहुंचा।
एस.डी.एम. पटना सदर, ए.डी.एम.(लॉ एंड ऑर्डर) सहित उच्चाधिकारियों ने फिलहाल यह आश्वासन दिया है कि जांच समिति की रिपोर्ट आने तक निर्माण कार्य स्थगित रहेगा।
यह किसानों के लिए भले ही एक छोटी जीत हो, संतोष और उत्साह की लहर हो, पर यह केवल अस्थायी राहत है, समाधान नहीं!
विधायक गोपाल रविदास ने स्पष्ट कर दिया है: "जब तक नया अलाईनमेंट रद्द नहीं किया जाता और पुराना स्वीकृत टेंडर वाला अलाईनमेंट लागू नहीं होता, आंदोलन जारी रहेगा!"
यह संघर्ष ज़मीन का नहीं, बल्कि न्याय और नीति का है। बिहार की जनता देख रही है कि इस 'परिवारवादी' चाल को कहाँ तक सफल होने दिया जाता है। प्रशासनिक अधिकारियों का आश्वासन केवल एक विराम है; अंतिम लड़ाई तो पुराने अलाईनमेंट की बहाली के साथ ही जीती जाएगी!
क्या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने रिश्तेदारों के दबाव से बाहर निकलकर, किसानों और राज्य के राजस्व के पक्ष में खड़ा होने का साहस दिखाएंगे? या फिर यह विवाद 'परिवारवाद' के एक और कलंकित अध्याय के रूप में याद किया जाएगा?
इस अवसर पर माले नेता गुरुदेव दास, शरीफा मांझी,देवी पासवान ,श्रवण कुमार प्रखंड राजद अध्यक्ष, दिलीप कुमार, मो कैस अनवर सहित अन्य लोग शामिल हुए।

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