मोकामा में दुलारचंद यादव की हत्या - सुशासन पर गहरा प्रश्नचिह्न 😔

   (यह तस्वीर दुलारचंद जी के साथ मैं श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में 27 फरवरी को इसी साल राजद के कार्यक्रम में था ) मैं इस जघन्य हत्या से मर्माहत हूँ।इनके साथ बहुत निजी बातें हुईं थीं और करीब हमलोग 6 घण्टे तक साथ रहे थे।


​मोकामा विधानसभा क्षेत्र के चुनाव प्रचार के दौरान जन सुराज पार्टी के समर्थक, दुलारचंद यादव की गोली मारकर हत्या कर दिया जाना, बिहार के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य पर एक गहरा और परेशान करने वाला प्रश्नचिह्न लगाता है। यह घटना न केवल एक व्यक्ति की दुखद मौत है, बल्कि उन सभी सिद्धांतों और दावों की विफलता है जिनके आधार पर राज्य में 'सुशासन' की बात की जाती है।

​गरीबों के दूत की हिंसक विदाई

 उनकी पहचान – "गरीबों, पीड़ितों, असहायों के दूत" के रूप में – इस क्रूर घटना के दर्द को और बढ़ा देती है। राजनीतिक ध्रुवीकरण और वर्चस्व की इस खूनी लड़ाई में एक ऐसा व्यक्ति शिकार बन गया, जिसने शायद वंचितों और हाशिए पर खड़े लोगों के लिए आवाज़ उठाने का साहस किया था। यह हत्या लोकतंत्र में निर्भय होकर राजनीतिक भागीदारी के अधिकार पर एक सीधा हमला है।

​जनता का रोष और सुशासन की चुनौती

"इनकी हत्या से पूरा बिहार शोकाकुल व रोष में है।" यह रोष स्वाभाविक है। चुनाव प्रचार के दौरान किसी समर्थक की दिन-दहाड़े हत्या हो जाना, यह दर्शाता है कि असामाजिक और बाहुबली तत्वों का कानून का डर लगभग खत्म हो चुका है।

​चुनावी हिंसा: यह घटना स्पष्ट रूप से चुनावी रंजिश की ओर इशारा करती है (आरोप सत्ताधारी गठबंधन के प्रत्याशी के समर्थकों पर लगे हैं, जिसकी पुलिस जांच कर रही है)। यह बिहार की राजनीति को वापस हिंसा के पुराने दौर में धकेलने जैसा है, जिसे पीछे छोड़ने का दावा किया जाता रहा है।

​कानून व्यवस्था पर सवाल: जब प्रचार के बीच, भारी भीड़ और सुरक्षा की मौजूदगी के संभावित समय में ऐसी घटना होती है, तो यह सीधे तौर पर राज्य की कानून-व्यवस्था (सुशासन) की पोल खोलती है। "कहाँ गया सुशासन," यह प्रश्न हर चिंतित नागरिक के मन में गूंज रहा है।

​लोकतंत्र की मर्यादा: चुनाव लोकतंत्र का पर्व होता है, लेकिन मोकामा की यह घटना दिखाती है कि कुछ क्षेत्रों में यह अभी भी बंदूकों और बाहुबलियों का अखाड़ा बना हुआ है। यह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए घातक है।

​दुलारचंद यादव की निर्मम हत्या बिहार की राजनीति में शुचिता और सुरक्षा की कमी को उजागर करती है। यह प्रशासन के लिए एक वेक-अप कॉल है कि केवल विकास के दावे पर्याप्त नहीं हैं; आम नागरिक, विशेषकर राजनीतिक कार्यकर्ता, को सुरक्षित माहौल मिलना चाहिए ताकि वे बिना किसी भय के अपने विचारों का समर्थन कर सकें।

​इस दुखद घटना की निष्पक्ष और त्वरित जांच होनी चाहिए और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए, ताकि भविष्य में कोई भी राजनीतिक हिंसा का सहारा लेने से पहले सौ बार सोचे। तभी दुलारचंद यादव जैसे जन-समर्पित व्यक्तियों को सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकेगी।

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