सुख-दुःख: जीवन के दो पूरक पहलू !
जीवन का ताना-बाना सुख और दुःख से बुना गया है, और ये दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। इनके बिना जीवन की पूर्णता की कल्पना करना असंभव है।
हम अक्सर सोचते हैं कि जीवन में केवल सुख ही होना चाहिए, पर क्या हमने कभी महसूस किया है कि दुःख का अनुभव ही सुख की सच्ची कीमत समझाता है?
गर्मी के बाद की ठंडक: जरा सोचिए, जब आप तेज चिलचिलाती धूप में काफी देर तक बाहर रहते हैं, तभी किसी ठंडे स्थान पर पहुँचने के बाद आपको उस ठंडक का वास्तविक सुकून महसूस होता है। यह गर्मी का अनुभव ही हमें बताता है कि उसके बाद मिलने वाली ठंडक कितनी राहत देती है।
अंधेरी रात के बाद की सुबह: इसी तरह, जब हम सघन, अंधेरी और लंबी रात गुजारते हैं, तो सुबह की पहली आहट होते ही हमारा बेचैन मन कितनी तसल्ली और शांति महसूस करता है। रात के अंधेरे का गहरा अनुभव ही हमें सुबह के प्रकाश और नई शुरुआत के महत्व को समझाता है।
यह प्रकृति का नियम है। अगर सुख है, तो दुःख भी होगा। दुःख की उपस्थिति ही हमें सुख को गहराई से अनुभव करने, उसकी कद्र करने और जीवन के उतार-चढ़ाव को सहजता से स्वीकार करने की शक्ति देती है।
अतः, जीवन में सुख और दुःख दोनों का स्वागत करें, क्योंकि वे ही मिलकर हमें जीवन का पूरा और सच्चा अर्थ बताते हैं।

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