वीर योद्धा दुलारचंद यादव की शहादत: बहुजन राजनीति के 'यादव' विरोधी विमर्श पर एक तीखा प्रतिरोध !😢-प्रो प्रसिद्ध कुमार

   


सामंती हिंसा और सत्ता संरक्षित अपराधीकरण की वापसी!

​जन सुराज के एक नेता, दुलारचंद यादव की दुखद शहादत ने एक बार फिर बिहार की राजनीति के गहरे और भयावह विरोधाभासों को उजागर कर दिया है। बताया जाता है कि मोकामा में चुनाव प्रचार के दौरान हुई चुनावी हिंसा में दुलारचंद यादव कुर्बान हो गए, कथित तौर पर उन्होंने जन सुराज के प्रत्याशी पीयूष प्रियदर्शी की जान बचाने का प्रयास किया था। यह घटना बनारस में पहलवान बचाउ यादव द्वारा पंडित मदन मोहन मालवीय की जान बचाने के लिए खुद को कुर्बान करने की ऐतिहासिक वीरगाथा की याद दिलाती है, जो दलित-पिछड़ों के उस बलिदान को दर्शाती है जिसे अक्सर भुला दिया जाता है।

​🔥 बहुजन एकता का ढाल और विमर्श की विडम्बना

​दलितों, अल्पसंख्यकों और अति-पिछड़ों के हक की लड़ाई में यादव समुदाय की भूमिका ऐतिहासिक रही है। चाहे वह कर्पूरी ठाकुर को सामंती गालियों का मुखर जवाब देना हो या रणवीर सेना के आतंक के खिलाफ गरीबों के लिए खड़े होना हो, यादवों ने हमेशा सामाजिक न्याय की लड़ाई में अग्रिम पंक्ति में नेतृत्व किया है। जगदेव बाबू की निर्मम हत्या के बाद शेरे बिहार राम लखन सिंह यादव ने कोइरी समाज को जो साहस दिया, वह बहुजन समाज के भीतर के मजबूत रिश्ते का प्रतीक था।

​लेकिन विडम्बना यह है कि सामंती ताकतों और सत्ता-संरक्षित अपराधियों ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत दबे-कुचले और छोटी जातियों के बीच यादव विरोधी विमर्श को हवा दी। इसका नतीजा यह हुआ कि बहुजन एकता की सबसे मजबूत कड़ी - यादव समुदाय - कमजोर होता चला गया और सभी के निशाने पर आ गया।

​🛡️ सत्ता की आड़ में सामंतवाद और मनुवादी राजनीति की वापसी

​दुलारचंद यादव की शहादत उस सत्ता-संरक्षित अपराधीकरण और मनुवादी वापसी की ओर संकेत करती है, जो आज बिहार की राजनीति को दूषित कर रहा है।

​अपराधियों का राजनीतिक संरक्षण: दुर्दांत अपराधी अनंत सिंह के घर से एके-47 जैसा प्रतिबंधित हथियार बरामद होता है, अदालत उन्हें 10 साल की सज़ा सुनाती है, लेकिन बाद में पटना हाई कोर्ट उन्हें इस मामले में बरी कर देता है। उन पर हत्या और हिंसा की साजिश रचने के आरोप लगे हैं और वे ज़मानत पर खुलेआम घूमते रहे हैं।

​आर्थिक विषमता और 'सुशासन': सत्ता के संरक्षण में देखते ही देखते कल तक साइकिल पर चलने वाले लोग आज अरबों की संपत्ति, कई गाड़ियों और अपार्टमेंट के मालिक बन गए। यह दिखाता है कि सत्ता की आड़ में हेराफेरी और जायदाद में गड़बड़ी को राजनीतिक संरक्षण मिला। यह वही 'सुशासन' है जो बहुजन राजनीति के विखंडन पर फल-फूल रहा है।

​जांच एजेंसियों की चुप्पी: गंभीर आरोपों के बावजूद, इनकम टैक्स, ईडी, सीडी जैसी केंद्रीय एजेंसियां ऐसे राजनीतिक अपराधियों की अकूत संपत्ति की जांच करने में निष्क्रिय क्यों रहती हैं? यह प्रश्न सत्ता और सामंतवाद के गठजोड़ पर एक गंभीर सवाल खड़ा करता है।

​✒️ शहादत का संकल्प: वोट की चोट और कलम की ताकत

​आज जो अति-पिछड़ा और दबे-कुचले वर्ग लंबा-लंबा पायजामा-कुर्ता पहनकर राजनीति कर रहा है, उन्हें यह समझना होगा कि जिस दिन यादव समाज बहुजनों और अल्पसंख्यकों की लड़ाई लड़ना छोड़ देगा, उस दिन सत्ता का संरक्षण और मनुवादी सुशासन उन्हें याद आ जाएगा।

​वीर योद्धा दुलारचंद यादव की शहादत व्यर्थ नहीं जानी चाहिए। वह अनंत सिंह जैसे "टपोरियों" से आँखें मिलाने का साहस रखने वाले नेता थे। उनकी मौत का बदला लेने का एक ही रास्ता है: संगठित होकर कलम की ताकत से लड़ना, बंदूक से नहीं।

​एक-एक वोट से चोट: सामंतियों को संरक्षित करने वाली एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) की नीतियों और उम्मीदवारों को अपने वोट की चोट से जवाब दें।

​बहुजन एकता का पुनर्जागरण: दबे-कुचले, अति-पिछड़ों, और अल्पसंख्यकों को यह समझना होगा कि उनका दुश्मन यादव नहीं, बल्कि सत्ता संरक्षित सामंती अपराधीकरण है। इस विमर्श को तोड़कर पुरानी बहुजन एकता को पुनर्जीवित करना समय की मांग है।

​यह लंबी लड़ाई **हिंसा से नहीं, बल्कि **चेतना, संगठन और वोट की शक्ति से जीती जाएगी।

Comments

Popular posts from this blog

डीडीयू रेल मंडल में प्रमोशन में भ्रष्टाचार में संलिप्त दो अधिकारी सहित 17 लोको पायलट गिरफ्तार !

जमालुद्दीन चक के पूर्व मुखिया उदय शंकर यादव नहीं रहे !

अलविदा! एक जन-नेता का सफर हुआ पूरा: प्रोफेसर वसीमुल हक़ 'मुन्ना नेता' नहीं रहे !