ज्वलंत मुद्दों पर वोट: क्या सच में 'सुशासन' है या सिर्फ़ 'जुमला'?-प्रो प्रसिद्ध कुमार।
महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी का त्रिवेणी संकट।
बिहार में आगामी चुनाव में महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसे ज्वलंत मुद्दों पर वोट होने की मांग ज़ोर पकड़ रही है। आमजन से लेकर युवा, किसान और बुद्धिजीवी वर्ग तक इन समस्याओं से त्रस्त है। 20 साल के 'सुशासन' और 'डबल इंजन' की सरकार के दावों के बावजूद, ये मूलभूत मुद्दे आज भी राज्य की सबसे बड़ी चुनौती बने हुए हैं।
बेरोजगारी: युवाओं का खत्म होता भविष्य
बिहार में बेरोजगारी एक विकराल रूप ले चुकी है। युवा वर्ग नौकरियों के अभाव में कराह रहा है, जिससे उनमें गहरा आक्रोश है।
निजीकरण का प्रहार: सरकारी क्षेत्रों में निजीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति ने युवाओं के लिए सरकारी नौकरियों के अवसर लगभग समाप्त कर दिए हैं।
पलायन की पीड़ा: रोजगार के अवसरों की कमी के कारण बिहारियों का पलायन आज भी एक गंभीर सामाजिक और आर्थिक त्रासदी है। लाखों युवा हर साल बेहतर भविष्य की तलाश में दूसरे राज्यों में जाने को मजबूर हैं।
उद्योगों का अभाव: पिछले दो दशकों में, सरकारें राज्य में एक भी बड़ा उद्योग स्थापित करने में विफल रही हैं। निवेश और औद्योगिक विकास के दावे सिर्फ कागज़ों तक सीमित रहे हैं, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन ठप्प है।
भ्रष्टाचार और अफसरशाही: सरकारी तंत्र पर लगा ग्रहण
राज्य के हर सरकारी कार्यालय में भ्रष्टाचार और अफसरशाही चरम पर है, जो आम आदमी के जीवन को दूभर बना रहा है।
जमीन संबंधी भ्रष्टाचार: मोटेशन (दाखिल-खारिज) और परिमार्जन जैसे ज़मीन संबंधी कार्यों में हजारों से लेकर लाखों रुपये तक की खुलेआम रिश्वतखोरी का एक 'रेट' तय हो चुका है। किसान और आम नागरिक अपने ही वैध कार्यों के लिए 'हलकान' हैं।
कमीशनखोरी का जाल: मृत्यु प्रमाण पत्र, जन्म प्रमाण पत्र, इंदिरा आवास जैसी आवश्यक और कल्याणकारी योजनाओं में भी कमीशनखोरी हावी है। यह दिखाता है कि भ्रष्टाचार निचले स्तर तक अपनी जड़ें जमा चुका है।
भ्रष्ट निर्माण कार्य: निर्माण कार्यों की गुणवत्ता इतनी खराब है कि हाल के वर्षों में दर्जनों पुलों के गिरने या धंसने की घटनाएँ सामने आई हैं। यह सीधे तौर पर सरकारी खजाने की लूट और जनता की जान-माल के साथ खिलवाड़ है।
शिक्षा और कानून-व्यवस्था: फिसड्डी बिहार की हकीकत
शिक्षा में फिसड्डी
शिक्षा के क्षेत्र में बिहार आज भी देश के पिछड़े राज्यों में गिना जाता है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अभाव, शिक्षकों की कमी और शैक्षणिक संस्थाओं में कुप्रबंधन युवाओं के भविष्य को अंधकारमय बना रहा है।
चरमराती कानून-व्यवस्था
राज्य में अपराध का ग्राफ लगातार ऊँचा है।
बेखौफ अपराधी: राजधानी जैसे सुरक्षित माने जाने वाले क्षेत्रों में भी थाने के बगल में हत्याएँ हो रही हैं, और पुलिस 'मुँह ताकते' रह जाती है। यह पुलिस प्रशासन की निष्क्रियता और अपराधियों के बुलंद हौसलों को दर्शाता है।
शराबबंदी का विरोधाभास
सरकार की महत्वाकांक्षी शराबबंदी नीति अपने उद्देश्य में विफल होती दिख रही है।

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