"पकौड़ा पुराण और रील की माया" !-प्रो प्रसिद्ध कुमार।


   

​अहो भाग्य! इस युग के 'अच्छे दिनों' के धूर्त दूत ने अब अपनी उपलब्धियों के महाकाव्य में एक नया अध्याय जोड़ा है। वह, जो कल तक 'भीख मांगने' को 'जीविका' और 'मजबूरी के पकौड़े तलने' को 'रोजगार' बताकर, अभाव की गाथा को आर्थिक क्रांति का शंखनाद घोषित कर रहा था, आज एक और 'उपलब्धि' का ढिंढोरा पीट रहा है—'टाइम पास रील बनाना' भी अब उसकी अनुकम्पा से प्राप्त 'कमाई का जरिया' बन गया है!

​यह कैसा 'अनपढ़ ज्ञानु' है, जिसकी दृष्टि में श्रम और स्वाभिमान का अंतर मिट चुका है? क्या कल यह ज्ञान-पुंज, जुए की लत, नशे के काले व्यापार, देह व्यापार की विवशता, या दंगे-हत्या के आपराधिक विक्षिप्तता से कमाए गए धन को भी 'अपना दिया हुआ रोजगार' बताकर, अपनी 'उपलब्धि' की सूची में गर्व से शामिल कर सकता है? यह ठग भाषा का विज़न, समाज के मूल्यों को किस गर्त में धकेल रहा है, यह प्रश्न आज हर विवेकवान मस्तिष्क में गूँज रहा है।

​वीआईपी (VIP) संतान और 'विकसित' भारत का सपना:

​यह ठग भाषा विज़न हमें बस इतना और बता दे कि गडकरी से लेकर दिवंगत सुषमा स्वराज तक, स्मृति ईरानी से लेकर राजनाथ सिंह तक—इनमें से कोई सिर्फ एक नाम बता दे, जिसका लाडला या लाडली 'रील बनाकर' या 'पकौड़े तलकर' अपनी आजीविका कमा रहा हो?

​प्रधानमंत्री के अपने बच्चों का तो प्रश्न नहीं है, परंतु क्या वह यह स्पष्ट करेंगे कि उनके कितने भतीजे-भतीजी 'रील बनाकर' या 'पकौड़े की दुकान' चलाकर 'आत्मनिर्भर' हुए हैं?

​(उत्तर में मौन की गूँज)

​जवाब में आपको एक भी नाम नहीं मिलेगा, क्योंकि हमने स्वयं खोज की है और सत्य यह है:

​नितिन गडकरी के पुत्र, निखिल और सारंग, बड़े उद्योगपति हैं, जो एथेनॉल उत्पादन, आयात-निर्यात और कृषि-संबंधी बड़े व्यवसाय (जैसे मानस एग्रो और सियान एग्रो इंडस्ट्रीज) चला रहे हैं। उनका सालाना कारोबार करोड़ों में है।

​दिवंगत सुषमा स्वराज की बेटी, बांसुरी स्वराज, प्रतिष्ठित ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से पढ़ी हुई और लंदन से बैरिस्टर की डिग्री प्राप्त, एक सफल क्रिमिनल लॉयर हैं और अब सक्रिय राजनीति में हैं।

​स्मृति ईरानी की बेटी, शैनेल ईरानी, अमेरिका के जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी लॉ सेंटर से एलएलएम की डिग्री प्राप्त एक वकील हैं, जबकि उनकी दूसरी बेटी जोइश एक शेफ हैं, जिन्होंने देश के कई नामचीन रेस्टोरेंट में इंटर्नशिप की है।

​राजनाथ सिंह के पुत्र, पंकज सिंह, उत्तर प्रदेश में विधायक और भाजपा के महासचिव हैं, जिनकी शिक्षा बी.कॉम और मैनेजमेंट में पीजी डिप्लोमा है।

​इनके अपने बच्चे विदेशों में प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से विज्ञान, अर्थशास्त्र, कानून और प्रबंधन की डिग्रियाँ लेकर बड़ी कंपनियों और बड़े पदों पे 'बड़ा पैसा कमा-खा रहे' हैं।

​और विडंबना देखिए! ये लोग सत्ता के सिंहासन से उतरकर, आपकी संतानों को 'पकौड़े' तलने और 'टाइम पास रील' बनाने की प्रेरणा देकर बहला रहे हैं। यह दोहरा मापदंड, यह छलावा, यह 'अनपढ़ ज्ञान' एक ऐसे 'विकसित भारत' की नींव रख रहा है, जहाँ सिर्फ शासक वर्ग की संतानें ही विज्ञान और समृद्धि की सीढ़ियाँ चढ़ेंगी, और शेष राष्ट्र 'रोजगार के नाम पर' तुच्छ जुगत और तात्कालिक मनोरंजन के भ्रमजाल में उलझा रहेगा।

​यह ठग भाषा का विज़न नहीं, यह देश के भविष्य के साथ किया जा रहा एक क्रूर व्यंग्य है, जिस पर इतिहास अवश्य हँसेगा और पीढ़ियाँ प्रश्न करेंगी!

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