स्वच्छता, प्रकृति और विज्ञान का महासंगम: छठ पूजा !-प्रो प्रसिद्ध कुमार।

   



​लोक आस्था का महापर्व 'छठ' केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति का वह जीवंत आलेख है, जहाँ स्वच्छता में देवत्व का दर्शन होता है और प्रकृति के प्रति आदिम समर्पण की भावना आधुनिक विज्ञान से हाथ मिलाती है। यह पर्व बिना किसी कर्मकांड, तामझाम या पुरोहित के, स्वयं अनुशासित पूजा का उत्कृष्ट उदाहरण है।

​चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व शरीर की शुद्धता के साथ-साथ मन को भी पावन कर देता है। आदि काल से ही ऊर्जा व जीवन के वाहक सूर्य, जीवनदायिनी नदी/सरोवर और कृषि से उत्पन्न अन्न की पूजा-अर्चना होते चली आ रही है। जिससे यह जीवन मिला और चलता है, उसी के प्रति कृतज्ञता और समर्पण व्यक्त किया जाता है।

​पौराणिक महत्व: त्याग, तप और शक्ति की कथा

​छठ पूजा का उल्लेख वेदों से लेकर रामायण और महाभारत काल तक मिलता है, जो इसकी शाश्वत महत्ता को दर्शाता है:

​कर्ण की सूर्य उपासना: महाभारत के महान योद्धा सूर्यपुत्र कर्ण प्रतिदिन कमर तक जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। माना जाता है कि इसी तपस्या और सूर्य की कृपा से वह महान दानवीर और अद्वितीय योद्धा बने। छठ में अर्घ्य देने की यह विधि आज भी प्रचलित है।

​राम-सीता का व्रत: एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, भगवान राम और माता सीता जब 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटे, तब मुद्गल ऋषि के निर्देश पर माता सीता ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन सूर्य देव की उपासना की थी, जिसके बाद से यह परंपरा लोक में 'छठ' के रूप में प्रचलित हुई।

​द्रौपदी का संकल्प: पांडवों के जुए में अपना राजपाट हार जाने के बाद, द्रौपदी ने भी सूर्य षष्ठी का व्रत रखा था, जिसके फल स्वरूप पांडवों को अपनी शक्ति और राजपाट वापस मिला।

​इसके अतिरिक्त, छठी मैया को सृष्टि की छठी शक्ति और संतान, समृद्धि तथा परिवार की रक्षा करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है, जिसका उल्लेख मार्कण्डेय पुराण में मिलता है।

​वैज्ञानिक तथ्य: आरोग्य और ऊर्जा का संचार

​छठ पर्व के अनुष्ठान केवल आस्था नहीं, बल्कि प्राचीन भारतीय ऋषि-मुनियों की वैज्ञानिक जीवनशैली का प्रतीक हैं:

​सूर्य अर्घ्य का रहस्य: सूर्यास्त और सूर्योदय के समय सूर्य को अर्घ्य देना वैज्ञानिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह वह समय होता है जब सूर्य की किरणें (विशेषकर सुबह 6 से 8 बजे और शाम 4 से 6 बजे) पराबैंगनी बी (UV-B) किरणों का सबसे संतुलित रूप होती हैं। ये किरणें त्वचा को नुकसान पहुँचाए बिना शरीर को पर्याप्त विटामिन डी (Vitamin D) प्रदान करती हैं, जो हड्डियों, त्वचा और प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए अनिवार्य है। नदी/सरोवर में खड़े होकर अर्घ्य देने से जल की सतह से परावर्तित किरणें शरीर पर पड़ती हैं, जो कई असाध्य रोगों को दूर करती हैं और शरीर को ऊर्जावान बनाती हैं।

​उपवास (फास्टिंग) और डिटॉक्स: व्रत के दौरान तीन दिनों तक भोजन और जल का कठोर संयम (निर्जला उपवास) शरीर को डिटॉक्सिफाई करता है, पाचन तंत्र को विश्राम देता है और मेटाबॉलिज्म में सुधार करता है। आधुनिक विज्ञान भी इंटरमिटेंट फास्टिंग के लाभ मानता है, जो कोशिकाओं की मरम्मत (Autophagy) और इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है।

​शुद्धता और प्रकृति संरक्षण: छठ पर्व का मूल आधार स्वच्छता और पवित्रता है। व्रत से पूर्व घर, पूजा स्थल और घाटों की सफाई की जाती है, जो पर्यावरण को स्वच्छ रखने का सबसे बड़ा संदेश है। पूजा में मिट्टी के बर्तनों, बांस के सूप/दउरा, गन्ना, फल-फूल आदि प्राकृतिक और जैविक सामग्री का उपयोग होता है, जिससे पर्यावरण को कोई हानि नहीं पहुँचती। यह प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर जीने की प्राचीन भारतीय जीवनशैली को दर्शाता है।

​अमिट इतिहास के वाहक सूर्य मंदिर

​भारत के अनेक राज्यों में आदि काल से ही सूर्य मंदिर विद्यमान हैं, जो इस सूर्योपासना की परंपरा की गहराई को सिद्ध करते हैं। चाहे वह उड़ीसा का कोणार्क सूर्य मंदिर, बिहार के औरंगाबाद का देवार्क या पालीगंज का उलार्क हो, ये सभी अपने साये में अमिट इतिहास को संजोए हैं जो युगों-युगों तक चलेगा।


​छठ पूजा वास्तव में स्वच्छता, प्रकृति और विज्ञान का एक अद्भुत संगम है। यह आत्म-अनुशासन, शरीर और मन की शुद्धि तथा प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का एक अनूठा माध्यम है। यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन का मूल स्रोत प्रकृति है और हमें उसका संरक्षण करना चाहिए, क्योंकि 'स्वच्छता में ही देवत्व है'।

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