निराशा के कोहरे में छिपी आशा की किरण!

  


​चारों तरफ निराशा की धुंध दिखती है, लेकिन इसी अंधकार के बीच कुछ रोशनी भी है। यह रोशनी कहीं दूर क्षितिज पर नहीं, बल्कि हमारे रोज़मर्रा के जीवन की छोटी-छोटी सफलताओं और बदलावों में मौजूद है। अक्सर हम बड़े-बड़े चमत्कारों या रातों-रात होने वाली क्रांतियों की उम्मीद करते हैं, जबकि असली और स्थायी परिवर्तन की नींव इन्हीं सूक्ष्म पलों में रखी जाती है।

​एक बच्चा जब पहली बार स्कूल में दाखिला पाता है, तो यह केवल एक बच्चे का प्रवेश नहीं होता; यह ज्ञान, अवसर और बेहतर भविष्य की एक पूरी पीढ़ी के लिए एक नए अध्याय की शुरुआत होती है। यह उस परिवार के सपनों का पहला कदम होता है, जिसने गरीबी और अशिक्षा की जंजीरों को तोड़ने का साहस किया है।

​जब एक लड़की जब बिना डर के साइकिल चला पाती है, तो यह सिर्फ़ यातायात का साधन नहीं होता; यह उसकी आज़ादी, आत्मविश्वास और सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ने की शक्ति का प्रतीक बन जाता है। उसके पैडल की हर घुमावट समाज को यह संदेश देती है कि महिलाएँ अब अपनी राहें खुद बनाएंगी, बिना किसी डर या रोक-टोक के।

​और जब एक किसान अपने खेत से उपज लेकर लौटता है, तो यह महज़ अनाज या सब्ज़ियां नहीं होतीं; यह उसके अथक परिश्रम, प्रकृति के साथ समन्वय और अपने परिवार को सम्मानजनक जीवन देने की प्रतिबद्धता की जीत होती है। खेत से घर लौटते समय उसके चेहरे पर जो संतोष होता है, वही देश की अर्थव्यवस्था की बुनियाद होती है।

​ये छोटे-छोटे क्षण, ये छोटी-छोटी उपलब्धियाँ, जिनसे एक छोटी-सी आशा जन्म लेती है, वे ही सबसे शक्तिशाली होती हैं। ये आशाएँ, किसी बीज की तरह, हमारे समाज की बंजर ज़मीन में अंकुरित होती हैं और धीरे-धीरे एक विशाल, परिवर्तनकारी वृक्ष का रूप ले लेती हैं।

​ये छोटी आशाएँ ही बड़े बदलाव की ज़मीन तैयार करती हैं।

​हमें इन छोटी जीतों को पहचानना होगा, उन्हें सराहना होगा और उन्हें बढ़ावा देना होगा। क्योंकि, बड़ा बदलाव हमेशा छोटी-छोटी अच्छाइयों, साहस के छोटे-छोटे कृत्यों और रोज़मर्रा के संघर्षों से ही आकार लेता है। आइए, हम सब मिलकर इस रोशनी को और प्रज्वलित करें।

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