प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY): हक़ीक़त और ख़ोखले दावों की दास्तान
सबको घर का नारा: कहाँ है "पक्का घर"?
वर्ष 2015 में "सबको घर" के महत्त्वाकांक्षी नारे के साथ शुरू की गई प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) का मूल उद्देश्य देश के हर बेघर नागरिक को 2022 तक पक्का घर उपलब्ध कराना था। लेकिन, जैसा कि समय गवाह है, यह लक्ष्य एक कागज़ी वादा बनकर रह गया है। आज जब हम 2025 में प्रवेश कर चुके हैं, तब भी देश में बेघर लोगों की मुश्किलों में कमी आने के बजाय, वे जमीनी हकीकत पर खोखली साबित हो रही हैं।
विस्तार पर सवाल: PMAY-अर्बन 2.0 की ज़रूरत क्यों?
2022 की समय सीमा बीत जाने के बाद, सरकार ने लक्ष्य की प्राप्ति के बजाय, योजना का विस्तार करते हुए PMAY-अर्बन 2.0 ला दिया है। यह कदम अपने आप में योजना की असफलता को इंगित करता है। यदि योजना अपने निर्धारित समय में अपने वादों को पूरा करने में सफल होती, तो इस तरह के विस्तार की आवश्यकता ही क्यों पड़ती? यह दर्शाता है कि पहले चरण के लक्ष्य पूरे नहीं हुए हैं, और केवल योजना का नाम और समय सीमा बदलकर जनता के सामने एक नया दावा पेश किया जा रहा है।
दावे और दस्तावेज़: बेघरों तक पहुँच का अभाव
सरकार द्वारा अक्सर यह दावा किया जाता है कि हर 20 मिनट में 150 घर बन रहे हैं, जो एक प्रभावशाली आँकड़ा प्रतीत होता है। लेकिन आलोचनात्मक अंश स्पष्ट करता है कि ये आँकड़े केवल कागज़ों के हैं। सबसे गंभीर मुद्दा यह है कि असल में बेघरों को इन घरों तक पहुँच ही नहीं मिलती।
यह विफलता न केवल निर्माण की गति पर, बल्कि वितरण, पारदर्शिता और सही लाभार्थियों की पहचान की प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े करती है। ऐसा लगता है कि सरकार का ध्यान केवल "घर बनाने" (निर्माण लक्ष्य) पर है, न कि "घर पहुँचाने" (लाभार्थी सशक्तिकरण) पर।
बेघर आबादी और सरकार की चुनौती
इस योजना की आलोचना का सबसे बड़ा आधार यह है कि बेघर लोगों की संख्या घटने के बजाय, बढ़ रही है। यह विरोधाभास सरकारी दावों और ज़मीनी सच्चाई के बीच की गहरी खाई को दर्शाता है। आवास योजनाओं का अंतिम लक्ष्य केवल इमारतें खड़ी करना नहीं, बल्कि सबसे वंचित वर्ग को एक सुरक्षित और सम्मानजनक छत प्रदान करना होना चाहिए। PMAY तभी सफल मानी जाएगी जब इसके लाभ कागज़ों से निकलकर वास्तव में उन लाखों बेघर लोगों तक पहुँचेंगे, जिनके लिए यह योजना शुरू की गई थी।

Comments
Post a Comment