उच्च शिक्षा में जवाबदेही का नया सवेरा: पारदर्शिता से सुधरेगी शैक्षणिक व्यवस्था !
डिजिटल निगरानी और अनुशासन: अब पढ़ाई में नहीं होगी 'फांकी' !
मैंने इस साल जितना जिस तारीख में क्लास में पढ़ाया ,उसे चैप्टरवैज डिजिटली लिख रखा है ताकि यह स्मरण में रहे और पूरे सिलेबस को पूरा किया है !-प्रो प्रसिद्ध कुमार।
बिहार के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने के लिए राज्यपाल एवं कुलाधिपति द्वारा उठाया गया कदम एक दूरगामी और ऐतिहासिक निर्णय है। कक्षाओं के विवरण को प्रतिदिन वेबसाइट पर अपलोड करने की अनिवार्यता से न केवल व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी, बल्कि यह शिक्षकों और छात्रों के बीच एक सक्रिय शैक्षणिक वातावरण भी तैयार करेगा।
अक्सर यह देखा गया है कि समुचित निगरानी के अभाव में कक्षाएं अनियमित हो जाती हैं, जिसका सीधा असर छात्रों के भविष्य पर पड़ता है। अब डिजिटल मॉनिटरिंग के माध्यम से यह सुनिश्चित होगा कि पाठ्यक्रम समय पर पूरा हो। जब प्राध्यापक और छात्र दोनों की उपस्थिति और सक्रियता ट्रैक होगी, तो "फांकी" मारने की प्रवृत्ति स्वतः समाप्त हो जाएगी और कैंपस में फिर से पढ़ाई का माहौल लौटेगा।
सिक्के का दूसरा पहलू: वित्त रहित कॉलेजों की समस्याओं का समाधान अनिवार्य
जहाँ एक ओर अनुशासन और जवाबदेही तय की जा रही है, वहीं व्यवस्था के दूसरे महत्वपूर्ण स्तंभ यानी वित्त रहित (Un-aided) कॉलेजों और उनके प्राध्यापकों की स्थिति पर भी गंभीरता से विचार करना समय की मांग है। शिक्षा के क्षेत्र में सुधार तभी पूर्ण माना जाएगा जब शिक्षकों को उनकी मेहनत का उचित प्रतिफल मिलेगा।
यूजीसी मानकों के अनुरूप वेतन: अनुशासन की अपेक्षा तभी सार्थक होती है जब शिक्षकों को UGC के निर्देशानुसार सम्मानजनक वेतन और सुविधाएं प्राप्त हों।
आर्थिक सुरक्षा से बढ़ेगी ऊर्जा: यदि प्राध्यापक आर्थिक रूप से सुरक्षित और मानसिक रूप से निश्चिंत होंगे, तो वे पूरी ऊर्जा के साथ शिक्षण कार्य में अपना योगदान दे पाएंगे।
बुनियादी सुविधाओं का विस्तार: डिजिटल रिपोर्टिंग के साथ-साथ कॉलेजों में आवश्यक बुनियादी ढांचा (Infrastructure) जैसे कि लाइब्रेरी, लैब और इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध कराना भी सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।
एक समावेशी सुधार की ओर बढ़ते कदम
राज्यपाल महोदय का यह आदेश विश्वविद्यालयों को उनकी खोई हुई प्रतिष्ठा वापस दिलाने की दिशा में एक 'मास्टरस्ट्रोक' साबित हो सकता है। लेकिन इस सुधार की सफलता का मार्ग 'जवाबदेही और सहयोग' के दोहरे पहियों पर टिका है। यदि हम एक तरफ कड़े अनुशासन की बात करते हैं, तो दूसरी तरफ हमें शिक्षकों के हितों, विशेषकर वित्त रहित संस्थानों के प्राध्यापकों के मानदेय और अधिकारों की भी रक्षा करनी होगी।
जब शिक्षक आर्थिक रूप से सशक्त होंगे और व्यवस्था पारदर्शी होगी, तभी हमारा प्रदेश उच्च शिक्षा के क्षेत्र में फिर से अग्रणी बनेगा।

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