​भारतीय शेयर बाजार से विदेशी पूंजी का 'महा-पलायन': अर्थव्यवस्था के लिए खतरे की घंटी ! -प्रो प्रसिद्ध कुमार, अर्थशास्त्र विभाग।

   


​हालिया रिपोर्ट के आँकड़े भारतीय पूंजी बाजार की एक डरावनी तस्वीर पेश कर रहे हैं। वर्ष 2025 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) द्वारा 1.58 लाख करोड़ रुपये की रिकॉर्ड निकासी कोई सामान्य लाभ-वसूली नहीं है, बल्कि यह भारतीय अर्थव्यवस्था के बुनियादी ढांचे पर गहराते अविश्वास का संकेत है। यह अब तक के इतिहास की सबसे बड़ी निकासी है, जो यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या 'शाइनिंग इंडिया' का आकर्षण अब वैश्विक निवेशकों के लिए फीका पड़ रहा है?

​निकासी के मुख्य कारण: नीतिगत और आर्थिक विफलता?

​रुपये की ऐतिहासिक कमजोरी: डॉलर के मुकाबले रुपये का लगातार गिरना विदेशी निवेशकों के लिए सबसे बड़ा जोखिम बन गया है। जब मुद्रा का मूल्य गिरता है, तो विदेशी निवेशकों का रिटर्न अपने आप कम हो जाता है।

​अत्यधिक मूल्यांकन (Overvaluation): भारतीय शेयर बाजारों का मूल्यांकन (Valuation) लंबे समय से वास्तविक आय से कहीं ऊपर चल रहा था। अब जब 'बुलबुला' फटने की कगार पर है, तो विदेशी निवेशक अपना पैसा सुरक्षित निकालने में ही भलाई समझ रहे हैं।

​वैश्विक भू-राजनीतिक तनाव: अमेरिका द्वारा टैरिफ बढ़ाना और वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता ने भारत जैसे उभरते बाजारों से जोखिम कम करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया है।

​बड़े दिग्गजों का धराशायी होना

​रिपोर्ट के अनुसार, सेंसेक्स की शीर्ष 10 में से 7 कंपनियों के बाजार पूंजीकरण (Market Cap) में 35,000 करोड़ रुपये से अधिक की गिरावट आई है। रिलायंस इंडस्ट्रीज, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), और भारती एयरटेल जैसे दिग्गज शेयरों की वैल्यू गिरना यह दर्शाता है कि संकट केवल मझोली कंपनियों तक सीमित नहीं है, बल्कि अर्थव्यवस्था के स्तंभ माने जाने वाले कॉर्पोरेट घराने भी इसकी चपेट में हैं।

​भविष्य की धुंधली तस्वीर

​हालांकि विशेषज्ञ 2026 में सुधार की उम्मीद जता रहे हैं, लेकिन वर्तमान आँकड़े बेहद निराशाजनक हैं। दिसंबर के अंतिम सप्ताह में भी निकासी का सिलसिला थमा नहीं है। यदि विदेशी निवेशकों का यह 'पलायन' इसी गति से जारी रहा, तो घरेलू निवेशकों (Retail Investors) का मनोबल टूटना निश्चित है, जिससे बाजार में एक बड़ी गिरावट (Crash) की स्थिति बन सकती है।

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