​आर्थिक प्रगति और वसुधैव कुटुम्बकम्: वैश्विक समृद्धि का नया मार्ग !

    


​भारत-ओमान व्यापार समझौता: एक नई आर्थिक सुबह !

​हाल ही में १८ दिसंबर को भारत और ओमान के बीच 'समग्र आर्थिक भागीदारी समझौता' (CEPA) हस्ताक्षरित हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ओमान के सुल्तान की उपस्थिति में वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल द्वारा किया गया यह समझौता दोनों देशों के संबंधों में एक मील का पत्थर है।

​इस समझौते की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि भारत के ९८ प्रतिशत निर्यात को ओमान के बाजार में शून्य शुल्क (Zero Duty) पर पहुंच मिलेगी। इससे भारतीय कपड़ा, रत्न-आभूषण, दवाइयां, वाहन, कृषि उत्पाद और चमड़ा उद्योग को अभूतपूर्व विस्तार मिलेगा।

​आर्थिक विकास और सामाजिक एकता का संबंध

​आर्थिक प्रगति कभी भी अलगाव में नहीं हो सकती। आज का वैश्विक युग आपसी निर्भरता का है। जब दो देश व्यापार करते हैं, तो केवल वस्तुओं का आदान-प्रदान नहीं होता, बल्कि संस्कृतियों और विचारधाराओं का मिलन भी होता है।

​रोजगार के अवसर: व्यापार बढ़ने से दोनों देशों में रोजगार सृजित होंगे, जिससे गरीबी कम होगी और सामाजिक स्थिरता आएगी।

​तकनीकी विनिमय: साझा व्यापार से नई तकनीकों का आदान-प्रदान होता है, जो अंततः मानव जीवन को सरल बनाता है।

​नफरत का त्याग और 'वसुधैव कुटुम्बकम्'

​आज जब दुनिया सीमाओं, धर्मों और जातियों के नाम पर बंटती नजर आती है, तब भारत का प्राचीन आदर्श 'वसुधैव कुटुम्बकम्' (पूरी पृथ्वी ही एक परिवार है) सबसे अधिक प्रासंगिक हो जाता है।

​सीमाओं से परे सोच: ओमान जैसे देशों के साथ प्रगाढ़ होते संबंध यह दर्शाते हैं कि आर्थिक समृद्धि के लिए भौगोलिक और धार्मिक सीमाओं से ऊपर उठना अनिवार्य है।

​शांति ही समृद्धि का आधार है: नफरत और कट्टरता केवल विनाश लाती है। यदि हमें एक समृद्ध भविष्य चाहिए, तो हमें पूर्वाग्रहों को त्यागकर आपसी सहयोग का हाथ बढ़ाना होगा।

​साझा भविष्य: जलवायु परिवर्तन से लेकर वैश्विक महामारी तक, आज की चुनौतियां साझा हैं। इनका समाधान भी तभी संभव है जब हम 'मैं' से निकलकर 'हम' की भावना को  अक्षरसः अपनाएं।

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