"श्रेष्ठ नागरिक, श्रेष्ठ राष्ट्र: सभ्यता की शुरुआत हमसे" !
हम अक्सर विदेशों की यात्रा करते हैं या टीवी पर विकसित देशों की झलक देखते हैं, तो वहां की साफ-सुथरी सड़कों, व्यवस्थित यातायात और सार्वजनिक अनुशासन की प्रशंसा करते नहीं थकते। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि यह व्यवस्था किसी 'चमत्कार' से पैदा हुई है? नहीं, यह वहां के नागरिकों के उन छोटे-छोटे निर्णयों का परिणाम है, जिन्हें वे अपनी जीवनशैली का हिस्सा बना चुके हैं।
व्यवस्था सरकारी नहीं, व्यक्तिगत है
अक्सर हम गंदगी या अव्यवस्था के लिए प्रशासन को दोष देते हैं। निस्संदेह, सरकार की जिम्मेदारी व्यवस्था बनाए रखना है, लेकिन उस व्यवस्था को सफल बनाना नागरिकों के हाथ में है। एक विकसित समाज की पहचान वहां की भव्य इमारतों से नहीं, बल्कि वहां के नागरिकों के व्यवहार से होती है।
परिवर्तन के तीन आधार स्तंभ
सभ्यता तीन बुनियादी संकल्पों पर टिकी है:
कचरा न फैलाना: "मेरा घर सा,सफ रहे, चाहे सड़क पर कचरा हो"—यह सोच ही अव्यवस्था की जड़ है। सार्वजनिक स्थान को अपना समझना ही सच्ची नागरिकता है।
नियमों का पालन: रेड लाइट पर रुकना या कतार में खड़े होना किसी डर के कारण नहीं, बल्कि अनुशासन के प्रति सम्मान के कारण होना चाहिए।
सार्वजनिक संपत्ति का सम्मान: जो चीज व्यक्तिगत रूप से हमारी नहीं है, उसे नुकसान न पहुंचाना या उसके प्रति मर्यादित रहना ही एक परिपक्व समाज का लक्षण है।

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