महंगा सफर: सुविधाओं के अभाव में बढ़ता वित्तीय बोझ
भारतीय रेल, जिसे देश की 'जीवन रेखा' कहा जाता है, आज अपने सबसे विरोधाभासी दौर से गुजर रही है। एक ओर सरकार इसे विश्वस्तरीय और 'अंतरराष्ट्रीय मानकों' के अनुरूप बनाने का दावा करती है, वहीं दूसरी ओर आम यात्री के लिए रेल का सफर आर्थिक और शारीरिक, दोनों मोर्चों पर एक 'दुस्वप्न' बनता जा रहा है।
किराया वृद्धि: राजस्व की भूख या सेवा का संकल्प?
हाल ही में भारतीय रेलवे द्वारा यात्री किराए में की गई वृद्धि—जो विशेष रूप से 215 किलोमीटर से अधिक की यात्रा पर लागू है—भले ही प्रति किलोमीटर एक से दो पैसे की मामूली बढ़ोतरी दिखे, लेकिन इसका व्यापक प्रभाव चौंकाने वाला है। सरकार को इससे अगले तीन महीनों में लगभग 600 करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व मिलने की उम्मीद है। यह स्पष्ट करता है कि सरकार बजट जैसे औपचारिक मौकों का इंतजार किए बिना, जब चाहे यात्री की जेब पर बोझ डालने के लिए स्वतंत्र है। सामान के वजन पर सीमा और अतिरिक्त शुल्क जैसे नियम इसी 'राजस्व वसूली' की कड़ी का हिस्सा हैं।
जमीनी हकीकत और सरकारी दावे
टिकटों की मारामारी: आज एक आम आदमी के लिए कन्फर्म टिकट मिलना किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं है। महीनों पहले बुकिंग करने के बाद भी अनिश्चितता बनी रहती है।
अमानवीय स्थितियां: 'हाई-प्रोफाइल' और महंगी ट्रेनों के प्रचार के बीच साधारण डिब्बों की स्थिति भयावह है। वहां यात्री 'निर्जीव सामान' की तरह ठूंस-ठूंस कर सफर करने को मजबूर हैं।
सुरक्षा पर प्रश्नचिह्न: हाल के समय में हुई रेल दुर्घटनाओं और ट्रेनों में चोरी व लूटपाट की घटनाओं ने रेलवे के सुरक्षा दावों की पोल खोल दी है। क्या यात्री सिर्फ किराया बढ़ाने के लिए है, सुरक्षा पाने के लिए नहीं?
एक तरफा बोझ
सबसे विडंबनापूर्ण स्थिति यह है कि सरकार किराया बढ़ाते समय यह भूल जाती है कि आम आदमी की आय में उस अनुपात में वृद्धि नहीं हुई है। रेलवे का आधुनिकीकरण केवल स्टेशनों की चमक-धमक या चंद वीआईपी ट्रेनों तक सीमित नहीं होना चाहिए। असली विकास तब माना जाएगा जब एक साधारण यात्री को सुरक्षित, सुगम और किफायती सफर का अधिकार मिले।
भारतीय रेलवे को केवल 'लाभ कमाने वाले उपक्रम' के रूप में देखना जनहित के विरुद्ध है। यदि सरकार किराया बढ़ा रही है, तो उसे जवाबदेही के साथ यात्री सुविधाओं, सुरक्षा और टिकटों की उपलब्धता में भी आमूलचूल सुधार करना होगा। वरना, "महंगा सफर" आम जनता के लिए केवल एक आर्थिक त्रासदी बनकर रह जाएगा।
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