नशा कर देती है नाश!(कविता)प्रसिद्ध यादव।
नशा कर देती है नाश!
फिर भी क्यों है इसकी प्यास!
धन भी जाता, तन भी जाता
मन विक्षिप्त हो जाता
भरी जवानी में चेहरे पर
झुर्रियां हो जाता
खुद ही अपनों के
शत्रु हो जाते
टूट जाती जीवन की आस!
नशा कर देती है नाश!
रोज कोलाहल होते घर में
बच्चों के जीवन लटका अधर में
नंगे पांव, नंगे बदन
सर में बांध ली कफ़न
हुआ व्यर्थ जीवन
सबको किया निराश!
नशा कर देती है नाश!
कहीं चिलम से धुएँ निकाले
बम भोले के जयकार करे
भांग , अफीम ,चरस हजम कर
प्रभु का ध्यान करे।
शादी हो या श्राद्ध
जन्मदिन और गम खुशी पर
छलके जाम पर जाम।
पीने वाले को हो बहाना
चाहे सुबह हो या शाम
पीते पीते ना रुके
चाहे थम जाये सांस!
नशा कर देती है नाश!
जब चढ़ जाता नशा दिमाग पर
तब प्रखर ज्ञानी , वक्ता हो जाता
जब हिलते डोलते राह चले
तब कोई न आये इसके पास
नशा कर देती है नाश!
कितने उजड़ गये घर
कितने हुए वीरान
कितने बसन्त में पतझड़ हुए
पहुंच गए शमशान
ये बुरी लत है बला
इससे नही है किसी को भला
आत्मबल और दृढनिश्चय हो
तब ये क्यों न छूटे भला!
प्रसिद्ध का है विश्वास
जीवन में होगा प्रकाश
नही रहेगा किसी की आस
खुशियां होंगी, हर्ष उल्लास!
प्रसिद्ध यादव।
कविता पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें, ताकि मेरा मनोबल बढ़े और जनहित में इसे फारवर्ड भी करें।
धन्यवाद!
Comments
Post a Comment