दूसरों की लड़ाई खुद लड़ लेते हैं बाबूचक के लोग-प्रसिद्ध यादव।
दो पक्ष के विवाद में तीसरे पक्ष के खून बहे । इसे बहादुरी कहें या बेवकूफी। न लेना , न देना और मुफ़्त में जान गंवाना। काश! इतना एफर्ट अपने बच्चों के तरक्की के लिए किया होता तो आज लोग दीन हीन, लाचार, बेवस नही होते।
बाबूचक में एक घर लोहार और 6 - 7 घर कोइरी लोग रहते हैं। ये दोनों पक्षों में विवाद हुआ, पंचायती हुई सुलझाने के लिए, लेकिन उल्टे यादव एक पक्ष लोहार के तो दूसरे पक्ष कोइरी समुदाय के हो गये। ये दोनों के विवाद यादवों के बीच हो गया और फिर समय समय पर दो यादवों की हत्या हो गयी। यह सिलसिला जारी रहा इसके बाद अन्य कई लोगों को आपसी रंजिश में भी जान गई। गांव से 10 -12 परिवार इसमें यादव, कोइरी, लोहार भी गांवों से सदा के लिए पलायन कर गए। पढ़े लिखे लोग भी गांवों की हिंसक घटनाओं से दूर रहे।बहुत समय बाद यादवों की कड़वाहट , मनमुटाव को दूर करने के लिए गांव में पंचायत हुई, इसमें पूर्व विधायक आशा सिन्हा के पति सत्यनारायण सिन्हा भी आये, समझौता हुआ। विधायक रीतलाल यादव का भी इस गांव से पुराना संबंध है।यहां के पुराने वेटननरी डॉक्टर जगदीश यादव, इनके पुत्र डीएसपी योगेंद्र यादव, भाई प्रोफेसर, बहु डॉक्टर, लालबाबू यादव के पुत्र और इंजीनियर रामनरेश यादव के पुत्र दोनो सरकारी बैंक के बैंक प्रबंधक, हमारे फुफेरे भाई इंजीनियर सियासरण सिंह यही से पढ़कर इंजीनियर बने थे, उर्दू फ़ारसी, कैथोलिक के जानकार अग्रज रामाशीष राय से गांव का नाम रौशन हुआ था। बहुत सी घटनाओं का जिक्र नही किया जा सकता है, इससे व्यक्तिगत मान सम्मान का भी ख्याल रखना जरूरी होता है। आज के यहां के युवा, युवती पढ़ लिख कर देश के कोने कोने में अपनी पहचान बना रहे हैं, शिक्षा के प्रति लगाव बढ़ा, साक्षरता दर बढ़ी है। गांव में एक 10 प्लस टू और एक दूसरा प्राथमिक विद्यालय भी है।नेउरा दनियावां रेल लाइन के निकट और दानापुर रेलवे स्टेशन से 3 किमी पश्चिम- दक्षिण एम्स के नजदीक बाबूचक छोटा रकवा का गाँव, अधिकांशतः मजदूर किसान, दैनिक मजदूरी करने वाले पिछड़े हैं। यह दानापुर प्रखंड और शाहपुर थाना की सीमा पर है।सड़क से उत्तर टोला दानापुर और दक्षिण फुलवारी शरीफ है। होली, दीवाली मिलजुलकर मनाते हैं, गाते हैं,सांस्कृतिक कार्यक्रम, खेल कूद सब होते थे, लेकिन राजनीति कटुता अब दूर करते जा रहा है, संकीर्ण मानसिकता घर कर रही है और ये भी लुप्तप्राय हो गई। अर्थयुग का प्रभाव यहां भी पड़ा, आदमी से आदमी दूर हो गया, बचपन के साथी, मानो पहचानते भी नहीं, शराब, प्यार, इश्क , अपराध की बीमारी नये युग की पहचान बन गई है।नव निर्माण हो,नई कहानी गढ़े लेकिन अतीत धूमिल न हो, संजोए रखें ,अपने पुरखों को हृदय में बसाए रखें।
इस देशभक्ति गीत को गुनगुनाते रहिये -
जब-जब देसवा पर
परली बिपतिया
जय गोविंद सिंह यादव हो, जिया के तूँ ही रखवार
बाप-महतारी तेजलऽ
तेजलऽ जियावा
मोर सिपाही हो, तेजल तू घरवा-दुआर।
छोड़ि सुख-निदिया भइली
तपसी जिनिगिया
मोर सिपाही हो, चूमेले माटी लिलार।
मनवाँ गंगाजल लागे
गीता तोरी बोलिया
मोर सिपाही हो, करतब अटल पहार।
धरती बचनियां मांगे
मांगे ले जवनियां
मोर सिपाही हो, मांगे ले तोहरो पियार।
जीत बरदनवां तोहरो
मीत रे मरनवां
जय गोविंद सिंह यादव हो, चरन पखारीं तोहार।
- भोलेनाथ गहमरी के मूल रूप को केवल मेरे द्वारा एक शहीद के नाम जोड़ा गया है।- बाबूचक से प्रसिद्ध यादव।
समाप्त।
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