भारत की उच्च व शोध शिक्षा को बढ़ावा मिले !प्रसिद्ध यादव।
प्रतिवर्ष 13 हजार करोड़ विदेशों में शिक्षा के लिए जाता है।
भारत में अभी भी उच्च शिक्षा और शोध शिक्षा संतोषजनक नहीं है। उच्च शिक्षा में गुणवत्ता ठीक नहीं होने के कारण यहां के बड़े राजनेताओं, उद्योगपतियों, अधिकारियों के संतान विदेशों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं लेकिन भारत में इसकी दशा में सुधार हो, पहल नहीं किया जाता है। देश के करीब 95 फीसदी लोग अपने संतान को विदेशों में उच्च शिक्षा के लिए भेजने में असमर्थ हैं । एक समय था जब विदेशों के लोग भारत पढ़ने आते थे ,जिसका उदाहरण नालंदा,विक्रमशिला, तक्षशिला विश्विद्यालय है।आज हम विश्वगुरु बनने की चाह रखते हैं तो उच्च शिक्षा में भी अव्वल होना पड़ेगा।यही कारण है कि आज राजनेता से लेकर मीडिया तक तथ्यहीन बातों को रखते हैं।एक घिसीपिटी रिकॉर्ड प्लयेर की तरह बजते रहते हैं, न उनके वक्तव्यों में कोई तथ्य होता है, न लक्ष्य ,सिर्फ लच्छेदार बाते करते हैं, जिससे जनता का मनोरंजन मात्र होता है।जबतक देश राज्यों के मार्गदर्शक के पास अपना विजन नही होगा,उस विजन को पूरा करने के लिए सामर्थ्यवान नही होगा, तब तक ये विजन जुमले साबित होते रहेंगे। जनसंख्या की दृष्टि से देखा जाए तो भारत की उच्चतर शिक्षा व्यवस्था अमरीका और चीन के बाद तीसरे स्थान पर आती है। द टाइम्स विश्व यूनिवर्सिटीज़ रैंकिंग-2020 के अनुसार, यूनाइटेड किंगडम की यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफोर्ड शीर्ष पर है जबकि दुनिया के शीर्ष 200 विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है। कभी-कभी तथ्य अपनी कहानी स्वयं बयाँ करते हैं, इसलिये भारत के शिक्षा व्यवस्था की वास्तविक स्थिति को समझने के लिये तथ्यों पर ही विचार करते हैं-
स्कूली शिक्षा हासिल करने वाले 9 छात्रों में से 1 ही महाविद्यालय पहुँच पाता है। भारत में उच्च शिक्षा के लिये रजिस्ट्रेशन कराने वाले छात्रों का अनुपात दुनिया में सबसे कम यानी सिर्फ़ 11% है। जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका में यह अनुपात 83% है।
इस अनुपात को 15% तक ले जाने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये भारत को 2,26,410 करोड़ रुपए का निवेश करना होगा जबकि 11वीं पंचवर्षीय योजना में इसके लिये सिर्फ़ 77,933 करोड़ रुपए का ही प्रावधान किया गया था।
हाल ही में नैसकॉम और मैकिन्से द्वारा किये गए शोध के अनुसार, मानविकी विषयों में 10 में से 1 और इंजीनियरिंग में डिग्री ले चुके 4 में से 1 भारतीय छात्र ही नौकरी पाने के योग्य पाए गए हैं। भारत के पास दुनिया की सबसे बड़ी तकनीकी और वैज्ञानिक मानव शक्ति का ज़ख़ीरा है इस तथ्य पर यहीं प्रश्नचिह्न लग जाता है।
राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद के शोध के अनुसार, भारत के 90% कॉलेजों और 70% विश्वविद्यालयों का स्तर बहुत ही कमज़ोर है।
भारतीय शिक्षण संस्थाओं में शिक्षकों की कमी का प्रत्यक्ष उदाहरण भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान हैं जहाँ 15 से 25 % तक शिक्षकों की कमी है।
भारतीय विश्वविद्यालय औसतन हर पाँच से दस वर्ष में अपना पाठ्यक्रम बदलते हैं लेकिन उसके बावज़ूद ये मूल उद्देश्य को पूरा करने में विफल रहते हैं।
भारतीय छात्र विदेशी विश्वविद्यालयों में पढ़ने के लिये प्रत्येक वर्ष सात अरब डॉलर यानी करीब 43 हज़ार करोड़ रुपए ख़र्च करते हैं क्योंकि भारतीय विश्वविद्यालयों में पढ़ाई का स्तर निम्न है।
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