वोट का रखें ख्याल ! सरकार से होते हैं सभी प्रभावित !-प्रसिद्ध यादव।

   

  " होइहें नृप ,कोई रानी ! चेरी छोड़ न होयब रानी !" रामचरित मानस में कुटिल मंथरा की यह उक्ति कैकेयी को समझाने के लिए कहती है और कैकेयी उसकी बातों में आकर अपनी सर्वस्

 गंवा देती है।इसी कुटिल बात को हम राजनीति में हकीकत समझ हम भी सर्वस्


बैठते हैं।बहुत ही सहज ढंग से लोग कह देते हैं कि सरकार किसी की बने हमें क्या फर्क पड़ता है ? हम जो काम करते हैं, वो करना ही पड़ेगा। यह लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है। किसी की सरकार बनने या हटने से फर्क पड़ता है ।फर्क इतना पड़ता है कि गुजरात मे बिल्किस बानो के   परिवार से जाकर पूछो ,हैदराबाद में दिवंगत आईएस जी कृष्णय्या की पत्नी उमा  से पूछो की उनके जीवन में क्या फर्क पड़ गया। गुजरात में हत्यारे व दुष्कर्मियों को जेल से रिहा करवाकर फूलों के हार से स्वागत किया गया, बिहार में भी दलित अधिकारी के हत्या आरोपी को बिहार सरकार जेल से निकालने की व्यवस्था कर दी है और इसको भी फूलों की हार से स्वागत होगा। एक जगह मरने वाले अल्पसंख्यक और दूसरी जगह दलित थे। ये सब जनता की एक वोट देने का नतीजा है।यही नहीं देश में केंद्रीय कर्मचारियों के ओल्ड पेंशन योजना खत्म हो गया, रेल,सेल,भेल बीएसएनएल बिक रहे हैं ,युवा बेरोजगारी के दंश झेल रहे हैं, किसान आत्महत्या कर रहे हैं, महंगाई बढ़ रही है, ये सब वोट के ही परिणाम है।सरकार भारत में कानून बनाने वाली संस्था नहीं है। कानून बनाना संसद और राज्य विधानसभाओं का काम है। सरकार बनती किसकी है जो बहुमत में होता है और जब बहुमत है तो किसी बिल को पारित करवाना आसान हो जाता है।

यहां तक ​​​​कि अगर न्यायालय सही प्राधिकरण को संबोधित करता है, तो भारत में न्यायालयों के पास कानून बनाने के लिए विधायिका को निर्देशित करने का कोई अधिकार नहीं है, अकेले समय-अवधि निर्दिष्ट करें। इसे "शक्तियों के पृथक्करण" के मूल सिद्धांत का उल्लंघन कहा जा सकता है, जिसमें कहा गया है कि कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका को एक दूसरे से स्वतंत्र रूप से कार्य करना चाहिए। भारतीय संविधान के तहत, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के पास मौलिक अधिकारों की रक्षा करने और कानून की व्याख्या करने की शक्ति है। संविधान न्यायालयों को कानून बनाने का निर्देश देने की शक्ति नहीं देता है।

इसके निर्देशों का पालन नहीं करने के लिए व्यक्तियों को अदालत की अवमानना ​​​​में ठहराया जा सकता है। 

मतदान बिना किसी लालच में आए करें ताकि बेहतरीन सरकार का चयन किया जा सके। जिनकी वोट पहली बार बनी है, वो खुद भी मतदान करें व अन्य लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करें। जो लोग भी गांवों में रहते हैं, वह बिना किसी लोभ व भय के होकर मतदान करें। हर एक वोटर इसे फर्ज समझकर वोट करेगा, तो इसका लाभ उन्हें जरूर मिलेगा, न तो किसी के भी प्रभाव में आने की जरूरत है और न डरने की। यही एक वोट आपकी तकदीर लिखती हैं।


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