कुर्सी की चाहत में - प्रो प्रसिद्ध कुमार।

  


 कुर्सी की चाहत में ज़मीर मार दिया।

अच्छे खासे सिद्धान्तवादी थे ।

लोहिया, लिमये ,जेपी के शिष्य थे ।

कट्टर समाजवादी थे ।

सत्ता की चाहत में जार -  जार कर दिया।

कुर्सी की चाहत में ज़मीर मार दिया।

क्यों न मरे ज़मीर ? 

सत्ता में ताकत है, लक्ष्मी है, रौब ,धौंस जो है।

शान - शौकत ,ऐश्वर्य, वैभव ,सम्मान है ।

पुश्त दर पुश्त सम्पति संचय का साधन है ।

जहाँ मिली कुर्सी वहीं तंबू गाड़ दिया ।

कुर्सी की चाहत में ज़मीर मार दिया।

कब इधर से उधर चला गया

पता ही न चला ।

लहरिया कट मार के आगे निकल गया।

सामने कोई आया ,  उसे मार दिया।

कुर्सी की चाहत में ज़मीर मार दिया।

न किसी से प्यार, न किसी से इकरार 

न किसी का सिद्धांत काम आया 

जहाँ मिला मलाई ,वहीं मुँह मार दिया।

कुर्सी की चाहत में ज़मीर मार दिया।

रंग बदलने में गिरगिट भी शरमाये 

अपनी करनी पर कभी न पछताये 

शरीर आत्मा से भले छूट जाए 

पर सत्ता एक पल के लिए ,  न विस्मृत हो पाए ।

सत्ता के लिए हीं बने हैं 

यही है आराधना ,साधना ,अमृत स्नान ।

यही विद्या, बुद्धि ,सकल ज्ञान ।

किये कितने तिकड़म ,फेके कितने जाल 

सत्ता मिल गयी तो  बेड़ापार हो गया।

कुर्सी की चाहत में ज़मीर मार दिया।

जो अनारी थे ,वे बंधे रह गए एक ही खूंटे में 




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