भारत में मजदूरों की संख्या चीन के बाद विश्व में दूसरी सबसे बड़ी है।
ख़ून मज़दूर का मिलता जो न तामीरों में
न हवेली न महल और न कोई घर होता।
मजदूर दिवस पर बधाई!
भारत में सबसे ज़्यादा मजदूर पलायन मुख्य रूप से कुछ राज्यों से होता है। हालांकि पलायन के आंकड़े समय-समय पर बदलते रहते हैं, लेकिन सामान्य तौर पर निम्नलिखित राज्य उच्च मजदूर पलायन दर वाले माने जाते हैं:
उत्तर प्रदेश: यह राज्य लंबे समय से देश के विभिन्न हिस्सों में श्रम आपूर्ति करने वाले प्रमुख राज्यों में से एक रहा है।
बिहार: बिहार भी एक ऐसा राज्य है जहाँ से बड़ी संख्या में लोग रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं।
राजस्थान: इस राज्य के भी काफी लोग बेहतर अवसरों की तलाश में अन्य राज्यों की ओर रुख करते हैं।
मध्य प्रदेश: मध्य प्रदेश भी उन राज्यों में शामिल है जहाँ से मजदूरों का पलायन अधिक होता है।
इन राज्यों से पलायन के कई कारण हैं, जिनमें शामिल हैं:
रोजगार के अवसरों की कमी: इन राज्यों में अक्सर पर्याप्त रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं होते हैं।
कृषि पर अत्यधिक निर्भरता: अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि होने और उसमें भी अनिश्चितता के कारण लोगों को अन्य क्षेत्रों में रोजगार खोजना पड़ता है।
गरीबी और आर्थिक पिछड़ापन: उच्च गरीबी दर और आर्थिक पिछड़ापन भी लोगों को बेहतर जीवन की तलाश में पलायन करने के लिए मजबूर करता है।
सामाजिक कारण: कुछ क्षेत्रों में सामाजिक और जातिगत भेदभाव भी पलायन का कारण बन सकता है।
भारत में मजदूरों की संख्या बहुत बड़ी है, जो चीन के बाद विश्व में दूसरी सबसे बड़ी है। 2020 में, भारत में लगभग 476.67 मिलियन कामगार थे। इनमें से, लगभग 41.19% कृषि क्षेत्र में, 26.18% उद्योग क्षेत्र में और 32.33% सेवा क्षेत्र में कार्यरत थे। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, 2024 में भारत की श्रम शक्ति लगभग 607.69 मिलियन थी।
भारत में मजदूरों की दशा एक जटिल मुद्दा है और इसमें काफी विविधता पाई जाती है। कुछ प्रमुख पहलू इस प्रकार हैं:
कानूनी सुरक्षा: भारत में मजदूरों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई श्रम कानून मौजूद हैं। इनमें न्यूनतम मजदूरी, काम के घंटे, स्वास्थ्य और सुरक्षा, और सामाजिक सुरक्षा जैसे पहलू शामिल हैं।
सामाजिक सुरक्षा: कुछ कानूनों के तहत मजदूरों को स्वास्थ्य बीमा, पेंशन और अन्य सामाजिक सुरक्षा लाभ मिलते हैं, खासकर संगठित क्षेत्र में।
ट्रेड यूनियन: मजदूरों को अपनी आवाज उठाने के लिए ट्रेड यूनियन बनाने का अधिकार है।
अनौपचारिक क्षेत्र का प्रभुत्व: भारत में लगभग 90% मजदूर अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं। इस क्षेत्र में काम करने वालों को अक्सर कम वेतन, खराब काम करने की स्थिति और सामाजिक सुरक्षा की कमी का सामना करना पड़ता है।
कम मजदूरी: कई मजदूरों को, खासकर असंगठित क्षेत्र में, बहुत कम मजदूरी मिलती है, जिससे उनका जीवन स्तर प्रभावित होता है।
लंबे काम के घंटे: भारत में औसत काम के घंटे विश्व के सबसे लंबे घंटों में से एक हैं। कई मजदूर प्रतिदिन 9 घंटे से अधिक और सप्ताह में 48 घंटे से अधिक काम करते हैं।
खराब कार्य स्थितियाँ: कई कार्यस्थलों पर सुरक्षा मानकों का पालन नहीं किया जाता है, जिससे दुर्घटनाओं और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का खतरा बना रहता है।
सामाजिक सुरक्षा का अभाव: असंगठित क्षेत्र के अधिकांश मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है।
भेदभाव: महिलाओं और कुछ विशेष समुदायों के मजदूरों को अक्सर भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
भारत सरकार ने श्रम कानूनों को सरल और आधुनिक बनाने के लिए नए श्रम संहिताएं लागू की हैं। इनका उद्देश्य संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों के मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा और बेहतर काम करने की स्थिति प्रदान करना है। हालांकि, इन सुधारों का जमीनी स्तर पर कितना प्रभाव पड़ता है, यह देखना अभी बाकी है। भारत में मजदूरों की एक बड़ी संख्या है और उनकी दशा में सुधार की आवश्यकता है, खासकर असंगठित क्षेत्र में। कानूनों और सरकारी प्रयासों के बावजूद, जमीनी स्तर पर मजदूरों को अभी भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
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