बिहार में भ्रष्टाचार: एक गंभीर संकट !- प्रो प्रसिद्ध कुमार।
बिहार में नीतीश सरकार के कार्यकाल में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा बन गया है, जिससे आम जनता त्रस्त है। विभिन्न क्षेत्रों में व्याप्त अनियमितताएं और शिकायतों पर धीमी कार्रवाई ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है।
प्रमुख क्षेत्रों में भ्रष्टाचार के उदाहरण:
खनन क्षेत्र में अवैध उगाही: बिहार में अवैध खनन एक बड़ी समस्या है। बालू, गिट्टी और पत्थर के अवैध खनन में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार व्याप्त है। इसमें अधिकारी, ठेकेदार और बिचौलिए सभी शामिल होते हैं। अक्सर देखा जाता है कि अवैध खनन की शिकायतें होने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती, या अगर होती भी है तो खानापूर्ति मात्र। इससे सरकार को राजस्व का भारी नुकसान होता है और पर्यावरण को भी क्षति पहुंचती है।
मद्य निषेध में विफलता और भ्रष्टाचार: बिहार में शराबबंदी लागू है, लेकिन यह अपने साथ भ्रष्टाचार का एक नया द्वार खोल गई है। अवैध शराब की बिक्री और तस्करी खुलेआम जारी है, जिसमें पुलिस और उत्पाद विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत की शिकायतें आम हैं। जगह-जगह छापे पड़ते हैं, लेकिन असली गुनहगार अक्सर बच निकलते हैं। शराबबंदी के बावजूद लोगों को आसानी से शराब मिल जाती है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि इसमें बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हो रहा है।
सरकारी टेंडरों में लूट: सरकारी योजनाओं के लिए जारी होने वाले टेंडरों में भी बड़े पैमाने पर लूट-खसोट की शिकायतें आती हैं। निर्माण कार्यों, सड़क निर्माण और अन्य विकास परियोजनाओं के टेंडरों में सांठगाठ करके मनमानी दरें तय की जाती हैं। इससे घटिया काम होता है और जनता के पैसे का दुरुपयोग होता है।
शिकायतों पर लचर कार्रवाई: भ्रष्टाचार से जुड़ी शिकायतों को निपटाने में सरकारी तंत्र की सुस्ती भी एक बड़ी समस्या है। आम जनता जब भ्रष्टाचार की शिकायत करती है, तो अक्सर उसे दर-दर भटकना पड़ता है और समय पर कोई सुनवाई नहीं होती। इससे लोगों का व्यवस्था से विश्वास उठ रहा है।
पुलों का ध्वस्त होना: निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार का जीता जागता सबूत
हाल के वर्षों में बिहार में कई पुलों का ध्वस्त होना निर्माण कार्यों में व्याप्त भ्रष्टाचार का जीता जागता प्रमाण है। ये घटनाएं दर्शाती हैं कि पुलों के निर्माण में गुणवत्ता से समझौता किया गया और भ्रष्टाचार के कारण जनता की सुरक्षा को ताक पर रख दिया गया।
यहां कुछ प्रमुख पुलों के नाम दिए गए हैं जो हाल के वर्षों में बिहार में ध्वस्त हुए हैं:
सुल्तानगंज-अगुवानी घाट पुल (भागलपुर): यह पुल 2023 में ध्वस्त हो गया था। यह बिहार की महत्वाकांक्षी परियोजना थी, जिसका निर्माण कार्य अभी चल रहा था। इसके दो बार गिरने से निर्माण कार्य की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल उठे हैं।
बूढ़ी गंडक नदी पर पुल (खगड़िया): यह पुल 2023 में ही बूढ़ी गंडक नदी पर बना एक और पुल ध्वस्त हो गया था। यह पुल भी भ्रष्टाचार और घटिया निर्माण सामग्री के इस्तेमाल का एक उदाहरण था।
गंडक नदी पर पुल (मोतिहारी): मोतिहारी के घोड़ासहन प्रखंड में गंडक नदी पर बन रहा एक पुल 2023 में गिर गया था।
मेंहदी पुल (अररिया): 2024 में अररिया के सिकटी में बकरा नदी पर बना मेंहदी पुल भी ध्वस्त हो गया। इसका उद्घाटन 2023 में ही हुआ था, लेकिन एक साल के भीतर ही यह गिर गया।
कमला बलान नदी पर पुल (मधुबनी): 2024 में मधुबनी में कमला बलान नदी पर बना एक पुराना पुल भी ध्वस्त हो गया था।
कोसी नदी पर पुल (सहरसा): 2024 में सहरसा में कोसी नदी पर एक निर्माणाधीन पुल गिर गया था।
इन पुलों का गिरना केवल एक दुर्घटना नहीं, बल्कि सरकारी योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार, घटिया सामग्री के इस्तेमाल और इंजीनियरिंग मानकों की अनदेखी का परिणाम है। इन घटनाओं से स्पष्ट होता है कि जवाबदेही तय करने और दोषियों पर कार्रवाई करने में सरकार की तरफ से भी ढिलाई बरती जा रही है।
बिहार में भ्रष्टाचार एक विकराल रूप ले चुका है, जिससे आम जनता त्रस्त है। खनन, मद्य निषेध और सरकारी टेंडरों में भ्रष्टाचार ने राज्य की प्रगति को बाधित किया है। पुलों के ध्वस्त होने जैसी घटनाएं इस बात का सबूत हैं कि भ्रष्टाचार किस हद तक बढ़ चुका है और इससे आम जनता को कितना नुकसान हो रहा है।
इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार को कड़े कदम उठाने होंगे, जिसमें भ्रष्टाचार पर नकेल कसने, जवाबदेही तय करने और दोषियों पर त्वरित कार्रवाई शामिल है। साथ ही, जनता की शिकायतों को गंभीरता से लेने और उन पर समयबद्ध तरीके से कार्रवाई करने की जरूरत है, ताकि लोगों का व्यवस्था पर विश्वास बहाल हो सके।

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