कैसा हो हमारा जनप्रतिनिधि: विचारों का योद्धा या सत्ता का सौदागर?
आज के राजनीतिक परिदृश्य में यह प्रश्न अत्यंत प्रासंगिक हो उठा है कि हमारा जनप्रतिनिधि कैसा हो। क्या हमें ऐसा नेता चाहिए जो केवल सत्ता के गलियारों में सौदेबाजी करे, या एक ऐसा व्यक्तित्व जो विचारों का सच्चा योद्धा हो और जनहित के लिए संघर्ष करे? दुर्भाग्यवश, वर्तमान राजनीति में अवसरवादी प्रवृत्तियां हावी होती दिख रही हैं, जहां विचारधारा और संघर्ष की जगह निजी महत्वाकांक्षाओं और सत्ता हथियाने की होड़ ने ले ली है।
राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी
राजनीतिक दलों की यह सर्वोच्च जिम्मेदारी है कि वे ऐसे व्यक्तियों को टिकट दें जो न केवल पार्टी के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध हों, बल्कि जिनकी वैचारिक जड़ें गहरी हों। एक सच्चा नेता विचारों से पैदा होता है और संघर्षों से सींचा जाता है, न कि रातोंरात किसी अवसर के बल पर खड़ा हो जाता है। जब दल ऐसे अवसरवादियों को प्रश्रय देते हैं जो केवल सत्ता प्राप्ति का माध्यम ढूंढते हैं, तो इसका सीधा प्रभाव लोकतंत्र की गुणवत्ता पर पड़ता है। ऐसे लोग जनता के हितों को साधने के बजाय अपने और अपने गुट के हितों को प्राथमिकता देते हैं।
एक वैचारिक योद्धा की पहचान
एक वैचारिक योद्धा वह है जो संगठन के प्रति अपनी निष्ठा रखता है, जिसने शून्य से भी विचारधारा को जीवंत रखा हो और आंदोलित रहा हो। ऐसे नेता राजनीति को सत्ता या सौदेबाजी का खेल नहीं मानते, बल्कि विचारों और संघर्ष का माध्यम समझते हैं। वे जनता के बीच रहकर उनकी समस्याओं को समझते हैं और उनके समाधान के लिए अथक प्रयास करते हैं। उनकी राजनीति किसी पद या लाभ के लिए नहीं, बल्कि समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए होती है। वे विपरीत परिस्थितियों में भी अपने आदर्शों और सिद्धांतों से समझौता नहीं करते।
जनता की भूमिका
केवल राजनीतिक दलों पर जिम्मेदारी डालना ही पर्याप्त नहीं है। जनता की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। हमें उन तथाकथित "सत्ता के दलालों" को पहचानना होगा और उन्हें नकारना होगा जो केवल अपने स्वार्थ के लिए राजनीति में आते हैं। जनता को ऐसे उम्मीदवारों को चुनना चाहिए जिनकी पृष्ठभूमि संघर्षों से भरी हो, जिन्होंने समाज के लिए कुछ किया हो और जिनकी विचारधारा स्पष्ट हो। हमें ऐसे नेताओं को प्रोत्साहित करना चाहिए जो भ्रष्टाचार और अवसरवादिता से दूर रहकर सच्चे अर्थों में जनसेवक की भूमिका निभाएं।
एक आदर्श जनप्रतिनिधि वह है जो विचारों से समृद्ध, संघर्षों से परिपक्व और जनता के प्रति पूर्णतः समर्पित हो। जब तक राजनीतिक दल और जनता दोनों इस दिशा में मिलकर काम नहीं करेंगे, तब तक एक स्वस्थ और सशक्त लोकतंत्र की कल्पना अधूरी रहेगी।

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