संविधान में समाजवादी ,पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक और गणराज्य का मतलब समझें !- प्रो प्रसिद्ध कुमार।
समाजवादी (Socialist)
समाजवादी शब्द का अर्थ है एक ऐसा समाज बनाना जहाँ समता और सामाजिक न्याय हो। इसका लक्ष्य है कि समाज के सभी वर्गों को समान अधिकार मिलें और किसी भी प्रकार का शोषण न हो।
तथ्य:
मूल संविधान में यह शब्द नहीं था। इसे 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया था।
भारतीय समाजवाद लोकतांत्रिक समाजवाद है, जो उत्पादन और वितरण के सभी साधनों के राष्ट्रीयकरण के बजाय मिश्रित अर्थव्यवस्था में विश्वास रखता है। इसका उद्देश्य गरीबी, असमानता और बीमारियों को समाप्त करना है।
यह गांधीवादी समाजवाद की ओर अधिक झुकाव रखता है, जिसका अर्थ है सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को कम करना और सभी के लिए जीवन स्तर में सुधार लाना।
पंथनिरपेक्ष (Secular)
पंथनिरपेक्ष का अर्थ है कि राज्य का कोई आधिकारिक धर्म नहीं होगा। राज्य सभी धर्मों को समान रूप से देखेगा और किसी विशेष धर्म को बढ़ावा नहीं देगा। नागरिकों को अपनी पसंद का कोई भी धर्म मानने, आचरण करने और प्रचार करने की पूर्ण स्वतंत्रता है।
तथ्य:
यह शब्द भी 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया था।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करते हैं।
पंथनिरपेक्षता का अर्थ धर्म-विरोधी होना नहीं है, बल्कि यह है कि राज्य धर्म के मामलों में तटस्थ रहेगा और सभी धर्मों का सम्मान करेगा। यह धार्मिक सहिष्णुता और सद्भाव को बढ़ावा देता है।
लोकतंत्रात्मक (Democratic)
लोकतंत्रात्मक का अर्थ है कि सरकार जनता के लिए, जनता द्वारा, और जनता की है। इसमें जनता को अपने शासकों को चुनने का अधिकार होता है। जनता स्वतंत्र है और किसी पर निर्भर नहीं है, बल्कि वह स्वयं अपने भाग्य का निर्धारण करती है।
तथ्य:
भारत में प्रत्यक्ष लोकतंत्र नहीं है, बल्कि प्रतिनिधित्वात्मक लोकतंत्र है, जहाँ जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनती है जो उनके बदले में कानून बनाते हैं और शासन करते हैं।
भारतीय लोकतंत्र सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार पर आधारित है, जिसका अर्थ है कि 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के मतदान का अधिकार है।
इसमें नियमित चुनाव, स्वतंत्र न्यायपालिका, कानून का शासन और नागरिकों के मौलिक अधिकारों की गारंटी शामिल है।
गणराज्य (Republic)
गणराज्य का अर्थ है कि भारत का राष्ट्राध्यक्ष (राष्ट्रपति) वंशानुगत नहीं होगा, बल्कि उसे जनता द्वारा या जनता के प्रतिनिधियों द्वारा निर्वाचित किया जाएगा। इसका यह भी अर्थ है कि भारत किसी विदेशी शक्ति का गुलाम नहीं है, बल्कि एक संप्रभु राष्ट्र है।
तथ्य:
भारत का राष्ट्रपति अप्रत्यक्ष रूप से एक निर्वाचक मंडल द्वारा चुना जाता है।
यह इस बात पर जोर देता है कि भारत में सर्वोच्च पद पर कोई भी नागरिक पहुंच सकता है, जैसा कि आपने डॉ. अब्दुल कलाम आज़ाद का उदाहरण देकर सही बताया। यह वंशवाद या विशेषाधिकार की बजाय योग्यता पर आधारित व्यवस्था है।
गणराज्य होने के नाते, भारत की सभी संवैधानिक शक्तियां जनता में निहित हैं।
ये सभी शब्द मिलकर भारतीय संविधान की प्रस्तावना को शक्ति प्रदान करते हैं और देश के शासन के मूल सिद्धांतों को दर्शाते हैं।

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