वंचित समाज: संघर्ष, सशक्तिकरण और सामाजिक परिवर्तन !- प्रो प्रसिद्ध कुमार।

   



भारत में वंचित समाज, जो देश की लगभग 85% आबादी का प्रतिनिधित्व करता है, सदियों से उपेक्षा, शोषण और अधिकारों से वंचित होने का सामना कर रहा है। यह विडंबना ही है कि समाज का सबसे मेहनतकश तबका होने के बावजूद, इन्हें आज भी कई लोग 'कमजोर' समझते हैं। हालांकि, इतिहास गवाह है कि इसी वर्ग से बुद्ध, डॉ. अम्बेडकर, कांशीराम, मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव जैसे महान व्यक्तित्व उभरे, जिन्होंने इन मानवीय त्रासदियों के खिलाफ आवाज़ उठाई और वंचितों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।


लालू यादव और वंचितों का उत्थान


लालू प्रसाद यादव का उदाहरण इस बात का एक सशक्त प्रमाण है कि कैसे एक व्यक्ति वंचितों को जगाकर उनके हक-हकूक के लिए लड़ सकता है। उन्हें तथाकथित 'संभ्रांत' वर्ग से घृणित गालियों का सामना करना पड़ा, क्योंकि उन्होंने उस यथास्थिति को चुनौती दी थी, जिसने वंचितों को हाशिए पर रखा था। उनके प्रयासों का ही परिणाम है कि देश में एक ऐसी लकीर खिंच गई है, जहाँ प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और मुख्यमंत्री जैसे सर्वोच्च पदों पर भी वंचित समाज के लोग आसीन हो रहे हैं। आज किसी भी राजनीतिक दल में यह हिम्मत नहीं है कि वह 1990 के दशक से पहले की तरह केवल उच्च वर्ग के व्यक्तियों को ही बिहार में मुख्यमंत्री बनाए।


बिहार में राजनीतिक प्रतिनिधित्व का बदलता परिदृश्य


बिहार का उदाहरण इस सामाजिक परिवर्तन को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। 1990 के दशक से पहले के आँकड़े बताते हैं कि बिहार के मुख्यमंत्री पद पर अधिकतर उच्च वर्ग का वर्चस्व था। लेकिन आज, वंचित वर्ग के विधायक सबसे अधिक संख्या में निर्वाचित हो रहे हैं। यह सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी वंचितों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व लगातार बढ़ रहा है।

यहां कुछ डेटा बिंदु दिए गए हैं जो इस बात को और स्पष्ट करते हैं:

संसद और विधानसभाओं में आरक्षण: भारतीय संविधान अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में सीटें आरक्षित करता है। यह आरक्षण सुनिश्चित करता है कि इन समुदायों को विधायिका में पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिले, जिससे वे अपने मुद्दों को उठा सकें और अपनी नीतियों के निर्माण में भाग ले सकें।

अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का बढ़ता प्रभाव: मंडल आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का राजनीतिक प्रभाव काफी बढ़ा है। लालू यादव जैसे नेताओं ने OBCs को संगठित कर उन्हें राजनीतिक शक्ति का एहसास कराया, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न राज्यों में OBC मुख्यमंत्री और बड़ी संख्या में विधायक चुने गए हैं।

स्थानीय निकायों में भागीदारी: पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं और SC/ST के लिए आरक्षण ने जमीनी स्तर पर वंचितों की भागीदारी को मजबूत किया है। इससे निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में उनकी आवाज़ को शामिल किया गया है।

इन आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि वंचित समाज अब केवल अपने अधिकारों के लिए संघर्ष ही नहीं कर रहा है, बल्कि राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त भी हो रहा है।


मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता


हालांकि, यह भी सच है कि अभी भी समाज के एक बड़े हिस्से में वंचितों को 'कमजोर' समझने की मानसिकता मौजूद है। इस मानसिकता को बदलने की आवश्यकता है। वंचित समाज ने अपनी मेहनत, संघर्ष और दृढ़ता से यह साबित किया है कि वे किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। उन्हें कमजोर समझना न केवल अनुचित है, बल्कि इतिहास के उन महान नेताओं के योगदान को भी नकारना है जिन्होंने इस समाज के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।

यह समझना महत्वपूर्ण है कि वंचितों का सशक्तिकरण केवल उनके लिए ही नहीं, बल्कि एक न्यायपूर्ण और समतावादी समाज के निर्माण के लिए भी आवश्यक है। जब तक समाज का एक बड़ा हिस्सा हाशिए पर रहेगा, तब तक देश की सच्ची प्रगति संभव नहीं है।




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