भारतीय संविधान का मूल दर्शन को जानें !
भारतीय संविधान का मूल दर्शन उन सिद्धांतों और आदर्शों पर आधारित है जिन पर हमारे राष्ट्र की नींव टिकी हुई है। ये सिद्धांत संविधान सभा की महान दूरदर्शिता और भारत की जनता की आकांक्षाओं का प्रतीक हैं। संविधान की प्रस्तावना (Preamble) इन मूल दर्शनों का सार प्रस्तुत करती है, जो पूरे संविधान में निहित विभिन्न प्रावधानों में परिलक्षित होते हैं।
संविधान सभा के शक्ति स्रोत जनता में निहित
भारतीय संविधान की सबसे मौलिक विशेषता यह है कि इसकी शक्ति का स्रोत भारत की जनता में निहित है। संविधान की प्रस्तावना "हम भारत के लोग" (We, the People of India) शब्दों से शुरू होती है, जो स्पष्ट रूप से घोषणा करता है कि संविधान को किसी राजा, किसी बाहरी शक्ति, या किसी विशिष्ट समूह द्वारा नहीं, बल्कि स्वयं भारत के लोगों द्वारा अधिनियमित, अंगीकृत और आत्मार्पित किया गया है। यह लोकप्रिय संप्रभुता (Popular Sovereignty) के सिद्धांत को स्थापित करता है, जिसका अर्थ है कि सरकार की सभी शक्ति अंततः लोगों से ही निकलती है।
संविधान सभा के उद्देश्य
संविधान सभा ने एक ऐसे राष्ट्र का निर्माण करने का लक्ष्य रखा जो अपने नागरिकों के लिए विशिष्ट उद्देश्यों को सुनिश्चित करे। ये उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में स्पष्ट रूप से उल्लिखित हैं:
न्याय: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक।
स्वतंत्रता: विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की।
समता: प्रतिष्ठा और अवसर की।
बंधुता: व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली।
न्याय (3 प्रकार)
भारतीय संविधान सभी नागरिकों के लिए तीन प्रकार के न्याय को सुनिश्चित करने का संकल्प लेता है:
सामाजिक न्याय: इसका अर्थ है समाज में किसी भी नागरिक के साथ जाति, धर्म, लिंग, नस्ल, या जन्मस्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। यह कमजोर वर्गों के उत्थान और सामाजिक समानता स्थापित करने पर जोर देता है।
संवैधानिक तथ्य: अनुच्छेद 15 (धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का प्रतिषेध), अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का अंत), और राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत (DPSP) जैसे अनुच्छेद 38 (राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा) सामाजिक न्याय को बढ़ावा देते हैं।
आर्थिक न्याय: इसका तात्पर्य है कि आर्थिक कारकों के आधार पर लोगों के बीच कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। यह धन और आय की असमानताओं को कम करने, सभी के लिए आजीविका के समान अवसर सुनिश्चित करने और शोषण को समाप्त करने पर केंद्रित है।
संवैधानिक तथ्य: अनुच्छेद 39 (राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति सिद्धांत, जैसे पुरुष और स्त्री कामगारों के लिए समान कार्य के लिए समान वेतन) और अनुच्छेद 43 (कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि) आर्थिक न्याय की अवधारणा को पुष्ट करते हैं।
राजनीतिक न्याय: इसका अर्थ है कि सभी नागरिकों को राजनीतिक प्रक्रिया में समान रूप से भाग लेने का अधिकार है, चाहे उनकी सामाजिक या आर्थिक स्थिति कुछ भी हो। इसमें सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार, सार्वजनिक कार्यालय तक समान पहुंच और समान राजनीतिक अधिकार शामिल हैं।
संवैधानिक तथ्य: अनुच्छेद 325 (धर्म, मूलवंश, जाति या लिंग के आधार पर किसी व्यक्ति का निर्वाचक नामावली में सम्मिलित किए जाने के लिए अपात्र न होना) और अनुच्छेद 326 (लोक सभा और राज्यों की विधान सभाओं के लिए निर्वाचनों का वयस्क मताधिकार के आधार पर होना) राजनीतिक न्याय के उदाहरण हैं।
स्वतंत्रता (5 प्रकार)
संविधान सभी नागरिकों के लिए पाँच प्रकार की स्वतंत्रता की गारंटी देता है:
विचार (Thought): अपने विचारों को विकसित करने और रखने की स्वतंत्रता।
अभिव्यक्ति (Expression): अपने विचारों को शब्दों, लेखन, कला या किसी अन्य माध्यम से व्यक्त करने की स्वतंत्रता।
संवैधानिक तथ्य: अनुच्छेद 19(1)(a) वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है।
विश्वास (Belief): किसी भी दर्शन या सिद्धांत में विश्वास रखने की स्वतंत्रता।
धर्म (Faith): किसी भी धर्म को मानने की स्वतंत्रता।
उपासना (Worship): अपने चुने हुए धर्म के अनुसार पूजा-अर्चना करने की स्वतंत्रता।
संवैधानिक तथ्य: अनुच्छेद 25 से 28 धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को सुनिश्चित करते हैं, जिसमें अंतःकरण की और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता शामिल है।
समता (2 प्रकार)
संविधान सभी नागरिकों के लिए दो प्रकार की समता सुनिश्चित करता है:
प्रतिष्ठा (Status): इसका अर्थ है कि किसी भी व्यक्ति के साथ उसकी सामाजिक, आर्थिक या व्यक्तिगत स्थिति के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा। सभी व्यक्ति कानून की नजर में समान हैं और उन्हें समान सम्मान मिलना चाहिए।
संवैधानिक तथ्य: अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समता), अनुच्छेद 15 (धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का प्रतिषेध), और अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का अंत) प्रतिष्ठा की समानता को सुनिश्चित करते हैं।
अवसर (Opportunity): इसका तात्पर्य है कि सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के विकास और उन्नति के समान अवसर प्राप्त होने चाहिए, विशेषकर सार्वजनिक रोजगार के मामलों में।
संवैधानिक तथ्य: अनुच्छेद 16 (लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता) अवसर की समानता का एक प्रमुख उदाहरण है।
बंधुता (भाईचारा)
संविधान बंधुता यानी भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने का संकल्प लेता है। इसका उद्देश्य सभी भारतीयों के बीच एक साझा पहचान और एकजुटता की भावना विकसित करना है। बंधुता व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करती है।
राष्ट्र की एकता और अखंडता
यह संविधान के मूल दर्शन का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। प्रस्तावना में "राष्ट्र की एकता और अखंडता" को सुनिश्चित करने का संकल्प लिया गया है। यह देश की संप्रभुता, अखंडता और स्थिरता को बनाए रखने के महत्व पर जोर देता है, किसी भी प्रकार की अलगाववादी या विभाजनकारी ताकतों का विरोध करता है। 'अखंडता' शब्द को 42वें संविधान संशोधन, 1976 द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया था।
व्यक्ति की गरिमा
भारतीय संविधान प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा को सर्वोच्च महत्व देता है। यह इस बात पर जोर देता है कि प्रत्येक नागरिक को सम्मान के साथ जीने का अधिकार है। यह न केवल व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है बल्कि राज्य को ऐसे वातावरण बनाने का निर्देश भी देता है जहां प्रत्येक व्यक्ति अपनी पूरी क्षमता का एहसास कर सके और गरिमापूर्ण जीवन जी सके।
संवैधानिक तथ्य: अनुच्छेद 21 प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण प्रदान करता है, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार के रूप में व्याख्यायित किया है। इसके अतिरिक्त, मौलिक कर्तव्य (अनुच्छेद 51A) भी व्यक्ति की गरिमा को बढ़ावा देने में भूमिका निभाते हैं।
संविधान के ये मूल दर्शन, जो प्रस्तावना में निहित हैं और पूरे दस्तावेज़ में विभिन्न अनुच्छेदों के माध्यम से कार्यान्वित होते हैं, भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के लिए संविधान सभा के दृष्टिकोण को दर्शाते हैं, जहाँ सभी नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता और समानता प्राप्त हो, और जहाँ बंधुता की भावना राष्ट्रीय एकता और प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा को सुनिश्चित करे।

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