रूह कंपा देने वाला सच: एक बेगुनाह की दास्तान (कहानी )
(पीड़ित की तस्वीर )
मैसूर के पास एक छोटे से गाँव में सुरेश नाम का एक सीधा-सादा युवक अपने बूढ़े, अस्थमा पीड़ित माता-पिता और पत्नी, मिल्की, के साथ रहता था। गरीबी ने उनके घर में डेरा डाल रखा था, लेकिन सुरेश की मज़दूरी से जैसे-तैसे घर का चूल्हा जल रहा था। उसके पिता उम्र के इस पड़ाव पर घर से बाहर नहीं निकल पाते थे, इसलिए सारा दारोमदार सुरेश के कंधों पर था। उनकी दुनिया छोटी थी, लेकिन खुशियों से भरी थी, कम से कम तब तक, जब तक किस्मत ने क्रूर मोड़ नहीं ले लिया।
एक मनहूस सुबह, मिल्की घर से गायब हो गई। सुरेश ने दो-तीन दिन तक उसे हर मुमकिन जगह ढूँढा, लेकिन उसका कहीं पता नहीं चला। दिल में डर और आँखों में बेबसी लिए, वह पुलिस थाने पहुँचा। वहाँ उसे दिन भर बैठाया गया और शाम को जैसे-तैसे उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की गई। रिपोर्ट लिखाकर वह घर लौटा और उम्मीदों के साथ सो गया।
अगले ही दिन, एक भयानक ख़बर ने गाँव को हिला दिया। जंगल में एक जली हुई महिला का नरकंकाल मिला। पुलिस ने बिना देर किए सुरेश को उसके घर से उठा लिया। थाने में उसके साथ अमानवीय बर्ताव किया गया, उसे बेरहमी से पीटा गया और एक ऐसे गुनाह के लिए कागज़ों पर दस्तखत करवा लिए गए, जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी। शाम होते ही, मैसूर के एसपी साहब टीवी पर आकर हत्या की गुत्थी सुलझाने का दावा कर रहे थे और वाहवाही लूट रहे थे। सुरेश को आनन-फानन में कोर्ट में पेश किया गया और 5 दिन का रिमांड ले लिया गया। इन पाँच दिनों में पुलिस ने एक ऐसी कहानी गढ़ दी, जो झूठ की बुनियाद पर खड़ी थी, और उसे सच साबित करने में जी-जान से जुट गई।
एक कुल्हाड़ी को हत्या का हथियार बताकर जब्त कर लिया गया, एक केन को पेट्रोल लाने का जरिया बताकर बाज़ार से खरीदी गई दिखा दिया गया। दुकानदार को गवाह बनाया गया कि सुरेश ने उससे केन खरीदी थी, और पेट्रोल पंप के कर्मचारी को गवाह बनाया गया कि सुरेश ने उससे पेट्रोल लिया था। हद तो तब हो गई जब सुरेश के पड़ोसियों को गवाह बनाया गया कि पति-पत्नी रोज़ लड़ते थे। इस तरह, बिना किसी ठोस जाँच के, पुलिस ने चार्जशीट दायर कर दी और सुरेश सलाखों के पीछे चला गया। सेशन कोर्ट से उसे आजीवन कारावास की सज़ा सुना दी गई।
सुरेश बार-बार चीखता रहा कि उसने अपनी पत्नी को नहीं मारा है, लेकिन उसकी एक न सुनी गई। यहाँ तक कि डीएनए रिपोर्ट भी फर्जी बना दी गई, जिसने उसकी बेगुनाही की आख़िरी उम्मीद को भी कुचल दिया। अंदर ही अंदर वह घुट रहा था, सोच रहा था कि उसकी जिंदगी अब यहीं खत्म हो जाएगी। उसके बूढ़े माता-पिता भी इस सदमे से टूट चुके थे।
लेकिन ईश्वर की अदालत में सुरेश बेगुनाह था। किस्मत ने पलटी मारी। सुरेश का एक दोस्त था, जो जानता था कि सुरेश ऐसा जघन्य अपराध कभी नहीं कर सकता। जिस काम को पुलिस को करना चाहिए था, वह काम सुरेश के दोस्त ने उठाया। अपना काम-धंधा छोड़कर वह सुरेश को बेगुनाह साबित करने में लग गया। उसकी मेहनत रंग लाई। गोवा के एक होटल में, उसे सुरेश की पत्नी मिल्की नज़र आ गई—ज़िंदा! वही मिल्की, जिसकी हत्या के आरोप में सुरेश जेल में सड़ रहा था।
सुरेश के दोस्त ने गोवा से ही उसके गाँव के पुलिस थाने में फोन किया, "इंस्पेक्टर साहब, सुरेश की पत्नी ज़िंदा है! वह गोवा के इस होटल में मेरे सामने खाना खा रही है!" इंस्पेक्टर ने उसे गालियाँ दीं और फोन रखने को कहा। लेकिन सुरेश का दोस्त हार मानने वाला नहीं था। उसने गोवा पुलिस को पूरी बात बताई कि कैसे मिल्की को कर्नाटक पुलिस ने मृत घोषित कर दिया है और एक बेगुनाह को जेल में डाल रखा है।
गोवा के पुलिसकर्मी ने कहा, "ऐसे कैसे गिरफ्तार कर सकते हैं? तुम एक काम करो, जाकर उसे चांटा मार दो। वो भी तुमसे लड़ेगी, तब मैं तुम दोनों को शांति भंग में थाने ले चलूँगा। फिर वहाँ से मैसूर के एसपी को अवगत कराएँगे।" सुरेश के दोस्त ने वैसा ही किया। उसने मिल्की और उसके साथ वाले आदमी से हाथापाई शुरू कर दी। होटल वालों ने पुलिस बुला ली और तीनों को थाने ले जाया गया।
वहाँ आधार कार्ड मांगे गए। जब गोवा पुलिस ने मैसूर के एसपी को बताया कि यह महिला मैसूर से भागी हुई है और यहाँ होटल में झगड़ा करती पकड़ी गई है, तो एसपी साहब को फ़ोन पर हाँ-ना करते हुए भी समझ आ गया कि यह वही लड़की है जिसकी सज़ा सुरेश पा रहा है। एसपी साहब ने तुरंत अपने इंस्पेक्टर को फोन किया और पूछा कि 2 साल पहले जंगल में मिली लाश किसकी थी। इंस्पेक्टर ने जवाब दिया कि वह सुरेश की पत्नी मिल्की की थी। एसपी ने गुस्से में कहा, "मिल्की मरी नहीं, ज़िंदा है! तुमसे तो मैं बाद में निपटता हूँ!" और फोन काट दिया।
एसपी ने तुरंत एक टीम गोवा भेजी, जो मिल्की को मैसूर ले आई। पुलिस ने मिल्की को कोर्ट में पेश किया। मिल्की ने स्वीकार किया कि वह किसी और से प्रेम करती थी और उसके साथ भाग गई थी। उसे इस बात का कोई अंदाज़ा नहीं था कि उसकी वजह से सुरेश को जेल में डाल दिया गया है।
और इस तरह, कर्नाटक हाईकोर्ट ने पुलिस को कड़ी फटकार लगाई। सुरेश को 1 लाख रुपये का मुआवज़ा देने का आदेश दिया गया और उसे बाइज्जत बरी कर दिया गया। एसपी ने मैसूर देहात थाने के पूरे स्टाफ को बर्खास्त कर दिया।
यह कहानी सिर्फ सुरेश की नहीं है, बल्कि उन अनगिनत लोगों की है जो पुलिस के झूठ, फरेब और काली करतूतों का शिकार होते हैं। यह एक ऐसी दर्दनाक दास्तान है जो दर्शाती है कि कैसे आम आदमी को पुलिस उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है और कैसे न्याय की लड़ाई कितनी कठिन हो सकती है। सुरेश की कहानी हमें यह सिखाती है कि जब तक सच सामने न आए, उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए, और एक सच्चे दोस्त का साथ किसी भी मुश्किल को आसान बना सकता है।

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