मानसिक गुलामी से आजादी: लालू यादव और 1789 की क्रांति !- प्रो प्रसिद्ध कुमार।

   


लालू प्रसाद यादव - यह नाम सिर्फ एक राजनेता का नहीं, बल्कि एक ऐसे जननायक का है जिसने बिहार की धरती पर सदियों से चली आ रही मानसिक गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने का बीड़ा उठाया. उनका संघर्ष 1977 से ही शुरू हो गया था और 1990 के दशक में यह एक ऐसे विराट स्वरूप में सामने आया, जिसे स्थापित व्यवस्था ने भले ही "जंगलराज" का तमगा दिया हो, लेकिन करोड़ों वंचितों के लिए यह स्वतंत्रता का प्रभात था.

उनकी यह यात्रा, फ्रांस की 1789 की महान क्रांति के समान थी, जहाँ सदियों से दबे-कुचले लोगों ने अपनी आवाज़ उठाई और परिवर्तन की लौ जलाई.


फ्रांस की क्रांति और लालू का उदय: एक तुलनात्मक दृष्टि


1789 की फ्रांसीसी क्रांति केवल राजशाही के विरुद्ध विद्रोह नहीं थी, बल्कि यह अधिकारहीनता, असमानता और मानसिक दासता के विरुद्ध एक प्रचंड विस्फोट था. वहाँ कुलीन वर्ग और पादरी समाज पर हावी थे, और आम जनता, जिसे "तीसरा एस्टेट" कहा जाता था, केवल कर चुकाने और सेवा करने के लिए थी. उनके मन में बिठा दिया गया था कि वे इसी स्थिति के लिए बने हैं.

ठीक इसी प्रकार, बिहार में भी आजादी के दशकों बाद तक, एक खास वर्ग का वर्चस्व था. सदियों से हाशिए पर धकेले गए दलित, पिछड़े और वंचित समाज को यह सिखाया गया था कि उनका स्थान सामाजिक पदानुक्रम में नीचे ही है. उन्हें शिक्षा, सम्मान और अवसरों से वंचित रखा गया था. यह केवल आर्थिक या राजनीतिक गुलामी नहीं थी, बल्कि यह मानसिक गुलामी की गहरी जड़ें थीं, जिसने उनके आत्मविश्वास को कुचल दिया था.

लालू यादव का आगमन इसी पृष्ठभूमि में हुआ. उन्होंने वंचितों की उस दबी हुई आवाज़ को बुलंद किया, जो सदियों से मौन थी. उन्होंने उन्हें यह एहसास दिलाया कि वे भी इस समाज के महत्वपूर्ण अंग हैं, उन्हें भी सम्मान और अधिकार का हक है. यह ठीक वैसे ही था जैसे फ्रांसीसी क्रांति ने आम लोगों को यह बताया कि वे सिर्फ प्रजा नहीं, बल्कि नागरिक हैं, जिनके अपने अधिकार हैं.


सत्ता का विकेंद्रीकरण और आम आदमी की भागीदारी


फ्रांसीसी क्रांति का एक महत्वपूर्ण पहलू था सत्ता का विकेंद्रीकरण और आम लोगों को निर्णय प्रक्रिया में शामिल करना. नेशनल असेंबली का गठन इसका ज्वलंत उदाहरण था. लालू यादव ने भी बिहार में यही किया. उन्होंने निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति को सत्ता के करीब लाकर खड़ा कर दिया. पंचायत चुनावों में वंचितों की भागीदारी सुनिश्चित की, उन्हें राजनीति की मुख्यधारा में लेकर आए. यह कोई छोटी बात नहीं थी; यह मानसिकता में आया एक भूचाल था.

जैसे 1789 की क्रांति ने पुराने सामंती ढाँचे को ध्वस्त कर दिया, वैसे ही लालू ने बिहार में सदियों पुराने सामाजिक-राजनीतिक सामंतवाद की रीढ़ तोड़ दी. उन्होंने दबे-कुचले लोगों को न केवल बोलने की हिम्मत दी, बल्कि उन्हें यह विश्वास भी दिलाया कि वे स्वयं अपने भाग्य के विधाता बन सकते हैं.


"जंगलराज" का मिथक और क्रांति का सत्य


जिस प्रकार फ्रांसीसी क्रांति को उसके विरोधियों ने अराजकता और हिंसा का नाम दिया, ठीक उसी तरह लालू के कार्यकाल को "जंगलराज" की संज्ञा दी गई. यह उन लोगों की ओर से गढ़ा गया एक शब्द था, जिन्होंने सदियों से अपने प्रभुत्व को कायम रखा था और जिन्हें वंचितों के उत्थान से अपनी सत्ता हिलती नज़र आ रही थी.

लेकिन करोड़ों वंचितों के लिए, वह "जंगलराज" नहीं, बल्कि "आजादी का उत्सव" था. उन्होंने पहली बार पुलिस थानों में अपनी बात रखी, सरकारी दफ्तरों में उनकी सुनवाई हुई, और उनके बच्चों ने स्कूलों का मुँह देखा. यह भले ही व्यवस्थित न रहा हो, लेकिन यह सामाजिक न्याय की पहली सीढ़ी थी. यह ठीक वैसे ही था जैसे क्रांति के दौरान होने वाली उथल-पुथल को स्थिरता पसंद लोग "अराजकता" कहते हैं, जबकि पीड़ितों के लिए वह बंधनमुक्त होने का हर्ष होता है.


एक चिरस्थायी विरासत


लालू यादव की देन को केवल उनके कार्यकाल तक सीमित नहीं किया जा सकता. उन्होंने जो बीज बोए, वे आज भी फल-फूल रहे हैं. वंचित समाज में आया आत्मविश्वास और चेतना उनकी सबसे बड़ी देन है. आज भी देश का हर वंचित समाज उन्हें भगवान मानता है, उनके नाम पर उनके दिल में एक असीम श्रद्धा है. जब कोई उनके प्रति अपशब्द का प्रयोग करता है, तो वह करोड़ों वंचितों के हृदय पर सीधे चोट करता है, क्योंकि यह केवल एक व्यक्ति का अपमान नहीं, बल्कि उनकी मुक्ति के प्रतीक का अपमान होता है.

लालू यादव ने 1789 की फ्रांसीसी क्रांति की तरह ही, एक समाज को मानसिक गुलामी से आजादी दिलाई. उन्होंने बताया कि असली शक्ति लोगों में है, और जब वे जागते हैं, तो कोई भी दीवार उन्हें रोक नहीं सकती. उनकी यह क्रांति भले ही रक्तरंजित न रही हो, पर इसने विचारों की एक ऐसी रक्तहीन क्रांति लाई, जिसने बिहार के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य को हमेशा के लिए बदल दिया.


Comments

Popular posts from this blog

डीडीयू रेल मंडल में प्रमोशन में भ्रष्टाचार में संलिप्त दो अधिकारी सहित 17 लोको पायलट गिरफ्तार !

जमालुद्दीन चक के पूर्व मुखिया उदय शंकर यादव नहीं रहे !

अलविदा! एक जन-नेता का सफर हुआ पूरा: प्रोफेसर वसीमुल हक़ 'मुन्ना नेता' नहीं रहे !